आप को बता दें कि भागवत महापुराण के अनुसार महर्षि अत्रि एवं अनुसूया की संतान हैं-चन्द्रमा। लोक प्रचलित है कि त्रिलोकी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की प्रशंसा सुनकर परीक्षा लेने के लिए भिक्षु वेश में अनुसूया के घर पहुंचे। अनुसूया ने अतिथियों का सत्कार किया, उसने तीनों देवों को पहचान लिया और भोजन हेतु आमंत्रित किया। तीनों देवों ने विचित्र शर्त रखी कि अनुसूया उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन परोसेगी तो वे भोजन करेंगे। माता ने शर्त स्वीकार कर ली और अपने तपोबल से तीनों देवों को नवजात शिशु के रूप में परिवर्तित कर दिया, बाद में निर्वस्त्र होकर भोजन कराया। इस प्रक्रिया में उनका मातृत्व जाग गया और उन्होंने सन्तान की कामना की। उनके तीन पुत्र दत्तात्रेय, चन्द्रमा और दुर्वासा हुए।
हरिवंश पुराण में एक अन्य कथा वर्णित है जिसके अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में सात मानस पुत्रों को अवतरित किया जो पूर्णतः वैराग्य की ओर उन्मुख थे। इनमें से ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया ने चन्द्रमा को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की और श्रद्धा भाव से चन्द्रमा का ध्यान किया। इस ध्यान के स्वरूप उनके नेत्रों से ऐसी द्युति निकली जो चन्द्र के समान कान्तिमान थी। दसों दिशाएं इस ज्योति को निज गर्भ में लेकर पोषण करने लगीं। लेकिन यह दिव्य तेज इनसे पल न सका और अधूरा ब्रह्माण्ड गर्भ पृथ्वी पर गिर गया। इससे कान्तियुक्त पर शक्तिहीन चन्द्र उत्पन्न हुए। गिरते हुए चन्द्र को उठाकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने रथ पर बैठा लिया और पृथ्वी की 21बार परिक्रमा करायी। मन्त्र बल से दसों दिशाओं को शक्ति दिलायी और चन्द्रमा को जीवन मिला।
क्षीर सागर के मंथन से अमृतमय चन्द्र की उत्पत्ति का वर्णन भी आता है। चन्द्र को जगत् का प्राण माना गया है। चन्द्रमा ब्राह्मणों का राजा, देवताओं में श्रेष्ठ, मृग पर सवारी वाला, अत्रि गोत्र वाला, दस अश्वों के वाहन वाला, श्वेत वर्ण वाला, एक हाथ में वर मुद्रा व दूसरे हाथ में गदा धारण करने वाला, पार्वती का स्वरूप है। हुताशन इसका दल, अश्वानि मन्त्र से पूजा जाता है। चन्द्र सभी पितर, मनुष्य, भूत, पशु, पक्षी, सरीसृप और वृक्ष आदि का पोषण करता है।
चन्द्र राजा है। 27 नक्षत्र इनकी रानियां हैं जो तारा से उत्पन्न हैं। अधिदेवता अप अर्थात् पार्वती और प्रत्यधि देवता उमा हैं।
लक्ष्मी सहोदरी हैं। इनके पुत्र का नाम बुध है, जो तारा से उत्पन्न हुए हैं। बुध के वैवस्वत मनु, मनु की पुत्री इला, इला के पुरुरवा और पुरुरवा के छह पुत्र हुए जिनमें ज्येष्ठ पुत्र नहुष, नहुष के ययाति, दानवाचार्य, शुक्राचार्य की पुत्री शर्मिष्ठा ययाति की पत्नी थी। शर्मिष्ठा के देवयानी व तीन पुत्र हुए। श्रीकृष्ण चन्द्रवंश में उत्पन्न हुए तथा यदुवंशी कहलाए। शूरसेन, वासुदेव और उनके पुत्र श्रीकृष्ण थे। द्वापर युग में राजा दिलीप, शान्तनु तथ चन्द्र वंश चला तत्पश्चात वाल्हिक योगी हो गए तथा कलियुग में चन्द्र वंश लुप्त हो गया और आगे सत्ययुग में फिर चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव होगा। ऐसा पुराणों में वर्णित है।
चन्द्र कर्क राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 10वर्ष की होती है। रत्न मोती है। चन्द्र की प्रिय वस्तुएं वंशपात्र, तंदुल, कर्पूर, मोती, श्वेत वस्त्र, वृषभ, रौप्य, घृतकुंभ, शंख, अग्निकोण, गुग्गुल, यमुना तट, आत्रेय, श्वेत वर्ण है। जप संख्या 11000 है। इसका वैदिक मन्त्र इस प्रकार है में वर्णित है-
ऊँ इमन्देवाऽअसपत्न ऊँ सुवध्वम्महते क्षत्रााय महते ज्यैष्ठयाय महते जान राज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्यपुत्त्रा ममुष्यै पुत्रामस्येविशऽएषवो मीराजा सोमोस्म्माकं ब्राह्मणानाद्भराजा॥
पौराणिक मन्त्र इस प्रकार है-
ऊँ सों सोमाय नमः।
इसका बीज मन्त्र इस प्रकार है-
ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः।
शिव उपासना से चन्द्र प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन ऊँ नमः शिवाय मन्त्र की एक माला का जाप करें।
दक्षिणवर्ती शंख की पूजा करें।
सोमवार का व्रत 5 या 11 या 43 बार करें।
श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करें।
सवा छह रत्ती का मोती चांदी में जड़वाकर कनिष्ठका अंगुली में धारण करें।
चन्द्र नीच का हो तो चन्द्र वस्तुओं का दान करें। चन्द्र उच्च का हो तो चन्द्र वस्तुओं का दान कदापि न करें।
शिवचालीसा का प्रतिदिन पाठ करें।
गले में चांदी का चन्द्रमा धारण करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी देकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करें।