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सोमवार, मई 03, 2010

देवी-सर्वश्री प्रेमचंद

मेरी प्रिय कहानियां शीर्षक के अंतर्गत जो कहानी मुझे पसंद है उसे पाठकों के पढ़ने के लिए  देंगे जिससे आप भी उसे पढ़कर आनंद उठा सकें.लोकप्रिय साहित्यकार सर्वश्री प्रेमचंद की दूसरी कहानी 'देवी' दे रहें हैं, इसे पढ़कर प्रेरणा लें और अपनी टिपण्णी दें कि कहानी कैसी है 



रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खडा था। सामने अमीनुददौला पार्क नीदं में डूबा खड़ा था। सिर्फ एक औरत एक तकियादार वेचं पर बैठी हुंई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फकीर खड़ा राहगीरो को दुआएं दे रहा था। खुदा और रसूल का वास्ता......राम और भगवान का वास्ता..... इस अंधे पर रहम करो ।

सड़क पर मोटरों ओर सवारियों का तातां बन्द हो चुका था। इक्केदुक्के आदमी  नजर आ जाते थे। फ़कीर की आवाज  जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज थी अब  खुले मैदान की बुलंद पुकार हो रही थी ! एकाएक वह औरत उठी और इधर उधर चौकन्नी आंखो से देखकर फकीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से  कुछ  कहकर एक तरफ चली गयी। फकीर के हाथ मे कागज का टुकडा नजर आया जिसे वह बार बार मल रहा था। क्या उस औरत ने यह कागज दिया है ?
यह क्या रहस्य है ? उसके जानने के कूतूहल से अधीर होकर मै नीचे आया ओर फेकीर के पास खड़ा हो गया।
मेरी आहट पाते ही फकीर ने उस कागज के पुर्जे को दो उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया। और पूछा,- बाबा, देखो यह क्या चीज है ?
मैने देखा दस रुपये का नोट था ! बोला दस रुपये का नोट है, कहां पाया ?
फकीर ने नोट को अपनी झोली में रखते हुए कहा-कोई खुदा की बन्दी दे गई है।
मैने ओर कुछ ने कहा। उस औरत की तरफ दौडा जो अब अधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।
वह कई गलियों मे होती हुई एक टूटेफूटे गिरे-पडे मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गयी।
रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मै लौट आया।
रातभर मेरा जी उसी तरफ लगा रहा। एकदम तड़के मै फिर उस गली में जा पहुचा । मालूम हुआ वह एक अनाथ विधवा है।
मैने दरवाजे पर जाकर पुकारा देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ।  औरत  बहार निकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर मैने हिचकते हुए कहा- रात आपने फकीर को...
देवी ने बात काटते हुए कहा अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।
  मैने उस देवी के कदमो पर सिर झुका दिया।

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