सन्तान सुख में बाधा के ज्योतिष योग
जन्म कुण्डली में पांचवा भाव सन्तान से संबंधित होता है। जब पांचवे भाव का स्वामी जिसे पंचमेश भी कहते हैं पापग्रह जैसे शनि, मंगल, केतु, सूर्य, राहु हों जो त्रिक भाव छठे, आठवें या बारहवें बैठ जाएं या पंचम भाव में ही निर्बल एवं शत्रुक्षेत्र होकर बैठ जाएं तो सन्तान सुख में बाधा आती है।
पंचमेश नीच राशि का हो और पंचम भाव को न देखता हो और पंचम में शनि व बुध की युति हो तो भी सन्तान सुख नहीं मिलता है।
छठे भाव में पंचमेश हो और लग्नेश भौम की राशि में हो तो भी सन्तान सुख में बाधा आती है।
कई बार कोई शुभ ग्रह जैसे शुक्र, गुरु, चन्द्र में से सन्तान भाव का स्वामी हो परन्तु नीच राशि या शत्रु भाव में हो और किसी बली पापग्रह की उस पर दृष्टि पड़े तो सन्तान सुख में बाधा आती है।
सन्तान सुख में बाधा हो तो दूर करने के उपाय
पंचम भाव में स्थित ग्रह एवं उसके स्वामी ग्रह के कोप की शान्ति हेतु उस ग्रह का वैदिक, तांत्रिाक बीज मन्त्रा की विधिपूर्वक करानी या करनी चाहिए। नवग्रह के बीज मन्त्र इस प्रकार हैं-
-ऊँ हराम हरीम हरोम सः सूर्याय नमः
-ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः
-ऊँ क्रां क्रौं क्रीं सः भौमाये नमः
-ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाये नमः
-ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुर्वे नमः
-ऊँ द्रां द्रीं द्रौ सः शुक्राये नमः
-ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः
-ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहुवे नमः
-ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतुवे नमः
उक्त मन्त्र एक माला कम से कम व दस माला अधिकतम प्रतिदिन करने चाहिएं।
जिन ग्रहों की पाप दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती हो तो उसका उपाय भी करना चाहिए।
पंचमेश ग्रह का रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
पितृ दोष के निवारण पितृ पूजा या कुल देवता की शांति भी अवश्य करनी चाहिए।
हरिवंश पुराण का विधिवत पाठ करना चाहिए।
संतान गोपाल का पाठ व संतान गोपाल का मन्त्र करना चाहिए।
बिना नागा संतान प्राप्ति का संकल्प लेकर सूर्योदय के उपरान्त मंदिर तक नंगे पांव जाकर प्रतिदिन चालीस दिन तक बिना नागा जल चढ़ाने पर भी संतान बाधा दूर हो जाती है।
शिव परिवार अर्थात् शंकर जी, पार्वती जी, गणेश जी व कार्तिकेय जी की एक साथ समग्र पूजा करने से भी सन्तान बाधा दूर होती है।
उक्त उपायों को करने से सन्तान बाधा दूर होती है। यदि आपको समझ न आए तो किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह लेकर उपाय करना चाहिए और सन्तान बाधा को दूर करना चाहिए।
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