नए रूप रंग के साथ अपने प्रिय ब्‍लॉग पर आप सबका हार्दिक स्‍वागत है !

ताज़ा प्रविष्ठियां

संकल्प एवं स्वागत्

ज्योतिष निकेतन संदेश ब्लॉग जीवन को सार्थक बनाने हेतु आपके लिए समर्पित हैं। आप इसके पाठक हैं, इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे। हमें विश्‍वास है कि आप सब ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म सन्देश, योग, तंत्र, राशिफल, स्वास्थ चर्चा, भाषा ज्ञान, पूजा, व्रत-पर्व विवेचन, बोधकथा, मनन सूत्र, वेद गंगाजल, अनुभूत ज्ञान सूत्र, कार्टून और बहुत कुछ सार्थक ज्ञान को पाने के लिए इस ब्‍लॉग पर आते हैं। ज्ञान ही सच्चा मित्र है और कठिन परिस्थितियों में से बाहर निकाल लेने में समर्थ है। अत: निरन्‍तर ब्‍लॉग पर आईए और अपनी टिप्‍पणी दीजिए। आपकी टिप्‍पणी ही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है।

मंगलवार, मई 04, 2010

लक्ष्मी नहीं टिकती है तो... -पं.जटाशंकर चतुर्वेदी



आप परेशान हैं कि लक्ष्मी टिकती नहीं है। यदि आप चाहते हैं कि लक्ष्मी टिके तो आप को अपने जीवन में कुछ करना होगा और कुछ नियमों पर चलना होगा या यूं कह लें कि जीवन में ध्यान रखना होगा कुछ आवश्यक बातों का।
करके तो देखें...
घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। यह जान लें कि घर में अस्त-व्यस्त रखीं वस्तएं भी नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। वस्तुओं का बिखराव वह भी पूर्व, उत्तर या पूर्व-उत्तर दिशा में हो तो समझ लें कि धन नहीं टिकेगा। धन की जगहों में बिखराव से भी लक्ष्मी नहीं टिकती है या यूं कह लें कि धन का आवागमन कम हो जाता है। 
यह जान लें कि धनकारक दिशाएं पूर्व, उत्तर या पूर्व-उत्तर है। बैंक की पास बुक, चैक बुक या धन रखने का कैश बॉक्स भी इन्हीं दिशाओं में रखना चाहिए। यदि आप ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से आप धन का आवागमन अधिक कर सकेंगे और लक्ष्मी टिकेगी भी। 
धन को उचित स्थान पर धनकारक दिशाओं में रखना चाहिए। धन को करीने से रखना चाहिए नाकि मसलकर, मोड़ तोड़ कर यूं ही नहीं फेंक देना चाहिए। ऐसा करने से भी लक्ष्मी पास में नहीं रुकती है। उसकी गति मन्द पड़ जाती है। 
कबाड़ घर में एकत्रा न करें क्योंकि उससे भी धन का आवागमन रुक जाता है। बहुत बार तो धन का आना ही रुक जाता है और सारा धन बाहर ही रहता है या धन आने से पहले जाने का मार्ग बना लेता है। 
दिशाएं दस हैं यह भली भांति जान लें क्योकि इन दिशाओं के अनुरूप ही भवन में निर्माण या सामान रखने से ही घर में लक्ष्मी का वास बहुतायत में होता है। घर में सुख समृद्धि का वास भी होता है। ये दिशाएं इस प्रकार हैं-
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, 
पूर्व-उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व।
आकाश व पाताल।
अब ध्यान रखने की बात यह है कि पूर्व, उत्तर, पूर्व-उत्तर दिशा नीची, खुली व हल्की होनी चाहिएं। इसकी अतिरिक्त अन्य दिशाओं की अपेक्षा ये दिशाएं आकाश मार्ग से भी खुली होनी चाहिएं। 
इसके विपरीत दक्षिण, पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम दिशाएं उंची, भारी व आकाश मार्ग से बन्द होनी चाहिएं।
दक्षिण, दक्षिण-पूर्व अग्नि का स्थान है। इसमें अग्नि की स्थापना होनी चाहिए।
पूर्व, उत्तर दिशा जल का स्थान होने के कारण इस दिशा में जल की स्थापना होनी चाहिए।
देवता के लिए पूर्व-उत्तर दिशा सर्वोत्तम है, उत्तर एवं पूर्व भी शुभ होती है। ईशान में भवन का देवता वास करता है, इसलिए इस स्थान पर पूजा या देवस्थल अवश्य बनाना चाहिए। इसे खुला और हल्का बनाना चाहिए। 
इसमें स्टोर या वजन रखने का स्थान कदापि नहीं बनाना चाहिए। इस स्थान को साफ रखना चाहिए। इस स्थान को प्रतिदिन साफ रखने से जीवन उन्नतिशील एवं सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है। 
पीने योग्य जल का भंडारण भी ईशान कोण में होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि कभी भी आग्नेय कोण में जल का भंडारण न करें। गैस के स्लैब पर पानी का भंडारण तो कदापि न करें, वरना गृहक्लेश अधिक होगा। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होने लगेंगे। गृहक्लेश अधिक होता है तो किचन में चैक करें अवश्य जल और अग्नि एक साथ होंगे अथवा ईशान कोण में वजन अधिक होगा या वह अधिक गंदा रहता होगा। ऐसे में लक्ष्मी का वास होता ही नहीं है। किचन में झूठे बरतन हों तो भी ऐसा ही होता है। रात्रि में किचन में झूठे बर्तन नहीं होने चाहिएं। यदि शेष रहते हैं तो एक टोकरे में भरकर किचन से बाहर आग्नेय कोण में रखने चाहिएं।
किचन दक्षिण या दक्षिण पूर्व में बनानी चाहिए। किचन में सिंक या हाथ  धोने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। 
जीना एवं टॉयलेट तो कदापि पूर्व या उत्तर या पूर्व-उत्तर में न बनाएं।
जब आप उक्त नियमों को अपनाएंगे और इनके अनुरूप करेंगे तो निश्चित रूप से धन-सम्पन्न बनेंगे। लक्ष्मी का आगमन भरपूर होगा। तब आप जान चुके होंगे कि लक्ष्मी को कैसे रोकना है। तब आप यह कदापि नहीं कहेंगे कि लक्ष्मी रुकती ही नहीं है। लक्ष्मी का सुवास साज व सफाई में ही होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्‍पणी देकर अपने विचारों को अभिव्‍यक्‍त करें।

पत्राचार पाठ्यक्रम

ज्योतिष का पत्राचार पाठ्यक्रम

भारतीय ज्योतिष के एक वर्षीय पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर ज्योतिष सीखिए। आवेदन-पत्र एवं विस्तृत विवरणिका के लिए रु.50/- का मनीऑर्डर अपने पूर्ण नाम व पते के साथ भेजकर मंगा सकते हैं। सम्पर्कः डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' ज्योतिष निकेतन 1065/2, शास्त्री नगर, मेरठ-250 005
मोबाईल-09719103988, 01212765639, 01214050465 E-mail-jyotishniketan@gmail.com

पुराने अंक

ज्योतिष निकेतन सन्देश
(गूढ़ विद्याओं का गूढ़ार्थ बताने वाला हिन्दी मासिक)
स्टॉक में रहने तक मासिक पत्रिका के 15 वर्ष के पुराने अंक 3600 पृष्ठ, सजिल्द, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण और संग्रहणीय हैं। 15 पुस्तकें पत्र लिखकर मंगा सकते हैं। आप रू.3900/-( डॉकखर्च सहित ) का ड्राफ्‌ट या मनीऑर्डर डॉ.उमेश पुरी के नाम से बनवाकर ज्‍योतिष निकेतन, 1065, सेक्‍टर 2, शास्‍त्री नगर, मेरठ-250005 के पते पर भेजें अथवा उपर्युक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट नं. 32227703588 डॉ. उमेश पुरी के नाम में जमा करा सकते हैं। पुस्तकें रजिस्टर्ड पार्सल से भेज दी जाएंगी। किसी अन्य जानकारी के लिए नीचे लिखे फोन नं. पर संपर्क करें।
ज्‍योतिष निकेतन, मेरठ
0121-2765639, 4050465 मोबाईल: 09719103988

विज्ञापन