इस नश्वर संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है। न धन टिकने वाला है, न युवावस्था, न घर रहता है, न ठिकाना। कुछ भी शाश्वत नहीं है। लेकिन यह जान लें कि निर्मल यश व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी अनन्त काल तक संसार में रहता है। अतः किसी के काम आकर, परमार्थ करके, उपकार करके, दान देकर, समाज हित या राष्ट्र हित करके, मानवता के लिए काम आकर, कुछ भी लोकोपकार या लोक के विकास के लिए करके निर्मल यश अवश्य अर्जित करना चाहिए। यश अनन्त काल तक संसार में रहता है। किसी सूक्त में कहा भी है यश रूपी रत्न का संग्राहक व्यक्ति कभी भी नष्ट नहीं होता है।
यश व कीर्ति की महत्ता सर्वविदित है। संसार मे विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति या यश अर्जित करने वालों को अनुभवी लोग सदैव स्मरण करते हैं। जिस व्यक्ति की कीर्ति एवं ख्याति जितनी विशाल है, वास्तव में जीवन वही व्यक्ति जीता है। जिसके पास यश रूपी शरीर होता है उसे बुढ़ापे और मृत्यु का भय नहीं होता है।
कीर्ति को अर्जित करने और उसकी रक्षा करने में जो संलग्न हैं वे अमरता को अवश्य प्राप्त होते हैं क्योंकि यश व कीर्ति की पताका नश्वर शरीर के नष्ट होने के उपरान्त भी फहराती रहती है।
यश व कीर्ति की समानता श्वेत रंग के साथ की जाती है। जिसका यश जितना निर्मल या श्वेत है उसका यश उतना अमर है। निर्मल यश दीर्घायु ही होता है और सदैव अमरता को पाता है। वस्तुतः कीर्ति व यश शीतल, निर्मल व आनन्ददायी होने चाहिएं। ये जितने निर्मल और धवल होंगे उतने अमर होंगे और सदैव यश की पताका फहराते रहेंगे।
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