बालारिष्ट से तात्पर्य यह है कि बाल्यकाल में ही बालक की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट हो। यह जिन योग के कारण होता है उसे बालारिष्ट योग कहते हैं। बालारिष्ट योगों को कुण्डली में ढूंढकर तदोपरान्त फलित करना चाहिए।
नवजात शिशु माता-पिता के लिए कैसा?
सूर्य से पिता तथा चन्द्रमा से माता का विचार किया जाता है। यदि शिशु की कुण्डली में सूर्य के साथ पापग्रह बैठे हों या सूर्य के दोनों ओर पापग्रह हों या सूर्य पर पापग्रहों की दृष्टि हो या सूर्य से चौथे, छठे-आठवें भाव में पापग्रह हों तो पिता को कष्ट होता है।
इसी प्रकार चन्द्रमा के साथ अरिष्ट योग माता के लिए कष्टकारक होता है। चन्द्रमा के साथ पापग्रह हों, पापग्रहों की दृष्टि चन्द्रमा पर हो, चन्द्रमा पापग्रहों से घिरा हो तो माता को कष्ट बताना चाहिए। यह ध्यान रखें कि ग्रह दृष्टि, नवांश कुण्डली और माता-पिता की शुभदशाओं से फल में अन्तर आता है इसलिए सब विचार कर सामंजस्य युक्त फल कहना चाहिए।
यदि शिशु की कुण्डली में पंचम भाव में सूर्य, मंगल व शनि की युति हो तो माता, पिता व भाई तीनों को कष्ट होता है। इसी प्रकार छठे भाव में चन्द्र, दसवें मंगल-शनि की युति हो तो बालक माता-पिता के लिए कष्टकारी होता है। तीसरे भाव में सूर्य बड़े भाई को एवं शनि या मंगल छोटे भाई के लिए कष्टकारी होते हैं।
बालारिष्ट योग
बालारिष्ट योग इस प्रकार हैं-
1. पहले चन्द्र, बारहवें शनि, नौवें सूर्य और आठवें मंगल हो।
2. पापग्रह पहले एवं सातवें हो, चन्द्रमा पापग्रह से युत हो एवं शुभग्रह से दृष्ट न हो।
3. क्षीण चन्द्र बारहवें हो, पहले एवं आठवें पापग्रह हो एवं केन्द्र में शुभग्रह न हों।
4. पहले क्षीण चन्द्र, आठवें व केन्द्र भाव में पापग्रह हों।
5. लग्न या चन्द्र के दोनों ओर क्रूर या पापग्रह हों।
6. शनि राहु की युति हो, चन्द्र पहले व मंगल आठवें हो।
7. लग्नेश आठवें हो और अष्टमेश लग्न में हो।
8. नौवें, पांचवे, सातवें एवं आठवें भाव में पापग्रह स्थित हों तथा चन्द्रमा को शनि व मंगल देखते हों।
बालारिष्ट का अनुमान
जब बालक की कुण्डली से यह ज्ञात हो जाए कि इसमें बालारिष्ट योग है और उसके जीवन को खतरा है। यह खतरा किस समय आएगा इसको ज्ञात करने के लिए निम्न नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. अरिष्टकारक ग्रहों में से जो सर्वाधिक बली ग्रह जिस राशि में हो उसी राशि में जब गोचर का चन्द्र आए तो उस समय अरिष्ट होता है।
2. जन्म राशि में जब गोचर का चन्द्र आता है उस समय भी अरिष्ट होता है।
3. जब गोचर का चन्द्रमा लग्न में आता है तो भी अरिष्ट होता है। चन्द्रमा जब क्षीण हो तथा पापग्रह दृष्ट हो तभी अरिष्ट करता है।
अरिष्ट भंग योग
जिस प्रकार अरिष्ट योग होते हैं उसी प्रकार अरिष्ट को भंग करने वाले अरिष्ट भंग योग भी होते हैं। कुण्डली में अरिष्ट भंग योग हो तो बालक का कुछ नहीं बिगड़ता है। फलित करते समय अरिष्ट भंग योग भी देख लेने चाहिएं। ये योग इस प्रकार हैं-
1. यदि बुध, गुरु व शुक्र केन्द्र में हों तो सब अरिष्टों का नाश होता है।
2. लग्नेश बली होकर केन्द्र में स्थित हो तो समस्त अरिष्ट भंग हो जाते हैं।
3. मंगल, राहु और शनि तीसरे, छठे एवं ग्यारहवें भाव में हों।
4. चन्द्रमा स्वराशि, उच्च राशि एवं मित्रक्षेत्री हो तो सर्व अरिष्ट दूर होते हैं।
5. मेष या कर्क राशि में लग्न में राहु स्थित हो।
6. जन्म कुण्डली में एक से अधिक ग्रह उच्च या स्वराशि के हों।
7. जब चन्द्र राशि का स्वामी लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो।
8. समस्त ग्रह शीर्षोदय राशि में हों। मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक एवं कुम्भ राशियां शीर्षोदय हैं।
बालक की कुण्डली में ग्रह की स्थिति एवं ग्रहों के परस्पर सम्बन्ध से यह विचार करें कि अरिष्ट योग कितने हैं और फिर उसमें उन अरिष्ट को भंग करने के योग हैं या नहीं। योग कारक ग्रह की दशाएं आ रही हैं या नहीं। यदि अशुभ स्थितियां बन रही हैं और गोचर भी खराब है तो आप कह सकते हैं कि स्थिति प्रतिकूल है। चिन्ता का विषय है अरिष्ट कष्टकारी है। अधिक खराब है तो माता-पिता को संकेत दे सकते हैं। अरिष्ट का उपाय बताने का प्रयास करें। ईश्वर से प्रार्थना और उपाय से भी अरिष्ट योग टल जाते हैं। इसके लिए योग्य दैवज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
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