नए रूप रंग के साथ अपने प्रिय ब्‍लॉग पर आप सबका हार्दिक स्‍वागत है !

ताज़ा प्रविष्ठियां

संकल्प एवं स्वागत्

ज्योतिष निकेतन संदेश ब्लॉग जीवन को सार्थक बनाने हेतु आपके लिए समर्पित हैं। आप इसके पाठक हैं, इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे। हमें विश्‍वास है कि आप सब ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म सन्देश, योग, तंत्र, राशिफल, स्वास्थ चर्चा, भाषा ज्ञान, पूजा, व्रत-पर्व विवेचन, बोधकथा, मनन सूत्र, वेद गंगाजल, अनुभूत ज्ञान सूत्र, कार्टून और बहुत कुछ सार्थक ज्ञान को पाने के लिए इस ब्‍लॉग पर आते हैं। ज्ञान ही सच्चा मित्र है और कठिन परिस्थितियों में से बाहर निकाल लेने में समर्थ है। अत: निरन्‍तर ब्‍लॉग पर आईए और अपनी टिप्‍पणी दीजिए। आपकी टिप्‍पणी ही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है।

सोमवार, मई 31, 2010

योगाभ्यास की तैयारी कैसे करें?-योगानन्द स्वामी


   
    आप योगाभ्यास के लिए तत्पर होना चाहते हैं। योगाभ्यास से पूर्व की तैयारी क्या होनी चाहिए, इसकी चर्चा करेंगे। 
    चित्त शुद्धि योग का प्रथम अंग है। चित्त शुद्धि के लिए शौच की आवश्यकता पड़ती है। शौच दो प्रकार का होता है-बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य शौच तो तन की स्वच्छता है। आभ्यन्तर शौच में मन की एकाग्रता, इन्द्रिय पर विजय ओर आत्म-साक्षात्कार की योग्यता प्राप्त होती है। हठयोग में चित्त शुद्धि के लिए नेति, धौति, नौलि, वस्ति, कपालभाति तथा त्राटक रूपी षट्कर्म होते हैं। क्रिया योग के अभ्यास से मन के क्लेश तथा विक्षेप नष्ट होते हैं तथा मन समाधि में प्रवेश के लिए तैयार होता है। क्रियायोग के अन्तर्गत तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्राणिधान आता है। यम, नियम, आसन तथा प्राणायाम तप के अन्तर्गत आते हैं। 
यम तथा नियम योग के मूलाधार हैं। इनसे चित्त शुद्ध होता है। यदि आप इनमें प्रतिष्ठित हैं तो समाधि स्वतः ही आएगी।
    सच्चा ब्रह्मचारी पत्थर, पुस्तक, वृक्ष तथा नारी के स्पर्श में कोई भेद अनुभव नहीं करता है।
यदि आप समाधि चाहते हैं तो आपको ध्यान की प्रक्रिया अच्छी तरह मालूम होनी चाहिए। ध्यान चाहते हैं तो धारणा की पूर्ण प्रक्रिया का ज्ञान होना चहिए। यदि आप धारणा चाहते हैं तो आपको प्रत्याहार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। यदि प्रत्याहार चाहते हैं तो आपको प्राणायाम की प्रक्रिया का ज्ञान होना चाहिए। प्राणायाम करना चाहते हैं तो आपको आसन का ज्ञान होना चाहिए। आसन का अभ्यास करने से पूर्व यम तथा नियम का अभ्यास करना चाहिए।
    मन के तीन दोष हैं-मल, विक्षेप तथा आवरण। मल मन की अशुद्धि है। छह कुवृत्तियां मल हैं(काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद तथा मात्सर्य)। मल का निवारण ही चित्तशुद्धि है। शुद्धिकरण योग का प्रथम अंग है। अन्तःकरण के शुद्ध होने पर मोक्ष तथा योगसिद्धि के सहज प्रवृत्ति होती है। इन कुवृत्तियों का विलोपन तथा इन्द्रियों का नियन्त्रण ही सत्त्वशुद्धि है।  
     सद्गुणों का विकास करें। इससे चित्त की स्थिरता की प्राप्ति  होती है। प्रेम, विनम्रता तथा करुणा से आप सारे संसार को जीत  सकते हैं। धैर्य का विकास करें। अधीरता से बचें क्योंकि इससे अस्थिरता  होती है। कोई भी कार्य सहजता से बनता है जब धैर्य के विकास सहित कोई भी कार्य किया जाता है। अधीरता और जल्दबाजी से  कार्य खराब होता है। अतः धैर्य सहित किसी भी कार्य को करें और जीवन में सफलता, स्थिरता और आनन्द को निमन्त्रण दें क्योंकि यही सुख को बढ़ाने में सहायक है। त्राटक का अभ्यास करें, इससे धारणा का विकास होता है और एकाग्रता बढ़ती है। वाणी तथा मन में नियन्त्राण होता है। 
ईश्वर प्राणिधान अर्थात्‌ सहज होकर पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की भक्ति या उपासना करना। भक्ति से चिन्ताएं, भय और  मानसिक सन्ताप दूर होता है। भक्त में समदृष्टि होनी चाहिए और वैर भाव कदापि नहीं होना चाहिए।
जप करें, जप तीन प्रकार का होता है-वैखरी, उपांशु एवं मानसिक। उपांशु जप का फल वैखरी जप से सहस्त्रगुना अधिक होता है। जप से अस्थिरता दूर होती है। मन चैतन्य होता है और विषयपरक प्रवृत्तियों से बचाव होता है। 
मुन की शुद्धता ही योगाभ्यास से पूर्व की तैयारी में महत्त्वपूर्ण है। उक्त सबसे यही होता है। 
योगाभ्यास से लाभ 
    योगाभ्यास से स्वास्थ्य ठीक रहता हैं। स्वस्थ शरीर में सुख का वास होता है। कहा भी गया है कि पहला सुख नीरोगी काया। स्वस्थ शरीर रोगमुक्त रहता है। जो स्थिर तथा सुखदायी हो वह आसन है-पांतजलि ऋषि ने यह कहा है। योगाभ्यास से स्वस्थ शरीर बनता है। फलतः सुख में वृद्धि होती है। 
यदि कोई व्यक्ति प्रस्तर की प्रतिमा की तरह लगातार तीन घंटे तक एक ही आसन पर बैठ सकते हैं तो यह आसन-सिद्धि की प्राप्ति है। यदि इस आसन के अभ्यास में पैरों में पीड़ा हो तो कुछ मिनट के लिए पैर फैला सकते हैं। धीरे-धीरे अभ्यास से एक वर्ष में आसनाभ्यास में परिपक्वता आ जाएगी और आसन-सद्धि प्राप्त करने में सफल होंगे। अब चाहे पद्मासन करें या सिद्धासन।
    योग के अनेक लाभ हैं। इससे शरीर स्वस्थ और उसमें निवास करने वाला मन भी स्वस्थ व स्थिर रहता है। मन ऊर्जावान्‌ रहता है। जीवन में आनन्द की अनुभूति होती है। चहुं ओर सुख-सुविधा का वातावरण बनने लगता है। प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है। सभी कार्य में मन लगता है। सकारात्मकता बढ़ती है। सकारात्मक विचार से तन व मन स्वस्थ रहता है और उसमें स्थिरता व एकाग्रता आ जाती है, जिससे जीवन में उत्थान होता है, उन्नति पथ प्रशस्त होता है। सबको सम दृष्टि से देखता है और वैर भाव समाप्त हो जाता है।योगाभ्यास के लिए तत्पर हो जाना स्वास्थ्य मार्ग पर बढ़ना है। यह जान लें कि स्वस्थ शरीर में सुख का वास होता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्‍पणी देकर अपने विचारों को अभिव्‍यक्‍त करें।

पत्राचार पाठ्यक्रम

ज्योतिष का पत्राचार पाठ्यक्रम

भारतीय ज्योतिष के एक वर्षीय पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर ज्योतिष सीखिए। आवेदन-पत्र एवं विस्तृत विवरणिका के लिए रु.50/- का मनीऑर्डर अपने पूर्ण नाम व पते के साथ भेजकर मंगा सकते हैं। सम्पर्कः डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' ज्योतिष निकेतन 1065/2, शास्त्री नगर, मेरठ-250 005
मोबाईल-09719103988, 01212765639, 01214050465 E-mail-jyotishniketan@gmail.com

पुराने अंक

ज्योतिष निकेतन सन्देश
(गूढ़ विद्याओं का गूढ़ार्थ बताने वाला हिन्दी मासिक)
स्टॉक में रहने तक मासिक पत्रिका के 15 वर्ष के पुराने अंक 3600 पृष्ठ, सजिल्द, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण और संग्रहणीय हैं। 15 पुस्तकें पत्र लिखकर मंगा सकते हैं। आप रू.3900/-( डॉकखर्च सहित ) का ड्राफ्‌ट या मनीऑर्डर डॉ.उमेश पुरी के नाम से बनवाकर ज्‍योतिष निकेतन, 1065, सेक्‍टर 2, शास्‍त्री नगर, मेरठ-250005 के पते पर भेजें अथवा उपर्युक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट नं. 32227703588 डॉ. उमेश पुरी के नाम में जमा करा सकते हैं। पुस्तकें रजिस्टर्ड पार्सल से भेज दी जाएंगी। किसी अन्य जानकारी के लिए नीचे लिखे फोन नं. पर संपर्क करें।
ज्‍योतिष निकेतन, मेरठ
0121-2765639, 4050465 मोबाईल: 09719103988

विज्ञापन