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सोमवार, मई 10, 2010

लक्ष्य-लक्ष्मी पुरी



एक बार की बात है एक विद्यार्थी जिसका नाम हर्षित था। वह सोलह वर्ष का होकर भी पढ़ने लिखने में कमजोर था। प्रत्येक उसको डांटता था। सभी उसे बुद्धू कहते थे। कोई भी पास से गुजरता तो यही कहता कि अरे मूर्ख कुछ पढ़ाकर, तेरे पर तो कोई असर ही नहीं होता है। है बुद्धू का बुद्धू। जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा, यदि तेरा यही हाल रहा तो। तेरे भेजे में कुछ पड़ता भी है या नहीं। हर्षित डांट खाता और चुप रह जाता। वह किसी से क्या कहे, बहुत पढ़ने पर भी उसे कुछ याद नहीं होता है। पढ़ने में मन भी नहीं लगता है। वह क्या करे, उसे कुछ समझ नहीं आता। हर समय खेलने, टीवी व वीडियो गेम का मन करता है। समय यों ही व्यर्थ हो जाता है। रोज-रोज की डांट से दुःखी होकर वह घर से भाग गया। भागकर वह एक धर्मशाला में रुक गया। उस रात उसे नींद नहीं आयी। वह लेटकर पता नहीं क्या-क्या सोचने लगा। उसने देखा एक टूटे पंखों वाला पतंगा दीवार पर चढ़ने की कोशिश कर रहा है और बार-बार गिर जाता है। उसने देखा कि ऐसा अनेक बार हुआ और अन्ततः सोलहवीं बार वह दीवार पर चढ़ ही गया। यह देखकर हर्षित के मन में हिम्मत का संचार हुआ। उसने मन में सोचा उसे घर न पाकर सब परेशान होंगे। वह अगले दिन घर वापस लौट आया और दिन-रात पढ़ने लगा, उसने ठान लिया था कि उसे प्रथम आना है। अब उसके पास लक्ष्य था और दृढ़ संकल्प। वह जीत गया और कक्षा में प्रथम आया। उसने सफलता का रहस्य जान लिया था।             
    

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