मिरगी रोग में किसी मानसिक विकार के कारण दूषित त्रिदोष वश मिरगी रोग होता है। प्रायः अधिक कुवैट या व्यसन में पड़ने से अथवा अचानक सिर में चोट और आंतों में अधिक कीड़े होने से अथवा संक्रामक बुखार से होता है। आयुर्वेद त्रिदोष के कारण इसके चार प्रकार मानता है, जैसे वात-मिरगी, पित्त-मिरगी, कफ-मिरगी एवं सन्निपात-मिरगी।
वात-मिरगी में रोगी के मुख से झाग, दांत भिंचना, कंपकपी, तेज सांस चलना होता है। पित्त-मिरगी में रोगी के मुख से पीला झाग और शरीर का वर्ण पीला हो जाता है। कफ-मिरगी में त्वचा का रंग श्वेत, मुख से सफेद झाग निकलते हैं। सन्निपात-मिरगी में उक्त तीनों लक्षण पाए जाते हैं। दुर्घटनावश या अचानक आघात से भी यह रोग हो जाता है।
ज्योतिष और मिरगी रोग
मूलतः मिरगी रोग का सम्बन्ध सूर्य और मंगल ग्रह की अशुभता के कारण होता है। सूर्य और मंगल ग्रह ऊर्जा के कारक हैं। जब शारीरिक ऊर्जा में अवरोध होने से मिरगी का दौरा पड़ता है। चन्द्र ग्रह मन का कारक है और ऊर्जा के प्रवाह में सहायक है। जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह भी दुष्प्रभाव में होता है। मुख्य रूप से चन्द्र, मंगल, सूर्य एवं लग्नेश के निर्बल एवं दुष्प्रभाव में होने पर मिरगी रोग होता है। रोग कब होगा इसके लिए रोगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा का विचार करते हैं। यहां मिरगी होने के कुछ ज्योतिष योग दे रहे हैं जिनको आप कुंडली में विचार कर यह ज्ञात कर सकते हैं कि अमुक कुंडली का जातक इस रोग से ग्रस्त होगा या नहीं। ये योग इस प्रकार हैं-
१. सूर्य, चन्द्र, मंगल ग्रह एक साथ लग्न या अष्टम में हों या ये ग्रह लग्न या अष्टम में किसी में युत होकर एक दूसरे से सम्बन्ध रखते हों अथवा अशुभ या क्रूर ग्रहों से दृष्ट हों। इस रोग में छाया ग्रह की युति या दृष्टि महत्वपूर्ण है।
२. चन्द्र व राहु की युति आठवें या पहले भाव में हो तो जातक को यह रोग होता है।
३. राहु लग्न में और चन्द्र छठे भाव में हो तो जातक को मिरगी रोग होता है।
४. जातक का जन्म यदि सूर्य या चन्द्र ग्रहण के समय हो तो भी यह रोग होता है।
५. षष्ठ या अष्टम भाव में शनि-मंगल की युति हो।
६. राहु व बुध की युति लग्न या छठे भाव में हो तो भी यह रोग होता है।
७. राहु-मंगल की युति लग्न में हो, लग्नेश छाया ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक को यह रोग होता है।
८. मंगल या बुध ग्रह छाया ग्रहों से युत या दृष्ट हो एवं इनका संबंध लग्न से हो तो जातक को मिरगी के दौरे पड़ते हैं।
९. विभिन्न लग्नों में उक्त योग हो या ये योग हों तो बवासीर का रोग होता है।
मेष लग्न हो और राहु-बुध लग्न में हों, सूर्य बारहवें हो या उससे संबंध रखता हो तो जातक को मिरगी के दौरे पड़ते हैं। शनि बारहवें हो, मंगल छठे हो एवं बुध अष्टम भाव में हो तो बवासीर का रोग होता है।
वृष लग्न हो सूर्य पहले भाव में, चन्द्र-केतु आठवें हो एवं लग्नेश शुक्र या राहु से युत हो तो जातक को मिरगी रोग से पीड़ित होता है।
मिथुन लग्न हो चन्द्र पूर्ण अस्त होकर पहले भाव में हो, मंगल दशम भाव में छाया ग्रह से दृष्ट या युत हो तो मिरगी रोग से जातक पीड़ित होता है।
कर्क लग्न हो मंगल, सूर्य चन्द्र पहले भाव में हों या अष्टम भाव में हों व अस्त् हों व छाया ग्रह से दृष्ट हों तो मिरगी रोग होता है।
सिंह लग्न में सूर्य-मंगल आठवें होकर छाया ग्रह से दृष्ट हों तो यह रोग होता है।
कन्या लग्न में चन्द्र पांचवे अस्त होकर राहु से युत या दृष्ट हो व लग्न में मंगल हो।
तुला लग्न में गुरु-शुक्र की युति सातवें हो और दोनों अस्त हों, मंगल व चन्द्र छाया ग्रह के प्रभाव में हो तो मिरगी रोग होता है।
वृश्चिक लग्न में सूर्य बारहवें अस्त मंगल के साथ युत हो, लग्न में राहु व बुध की युति हो तो मिरगी रोग होता है।
धनु लग्न में बुध-चन्द्र की युति लग्न में हो, गुरु व मंगल त्रिाक भावों में छाया ग्रह से युत या दृष्ट हों तो यह योग होता है।
मकर लग्न में लग्नेश छाया ग्रह से युत या दृष्ट हो, लग्न में सूर्य-चन्द्र की युति हो।
कुंभ लग्न में शनि छठे अस्त हो, मंगल व चन्द्र छाया ग्रह के साथ दसवें हो।
मीन लग्न में छठे या आठवें भाव में बुध सूर्य के साथ हो एवं मंगल छाया ग्रह के साथ आठवें युत हो तो यह रोग होता है।
यहां दो जातकों की कुंडली दे रहे हैं जो मिरगी रोग से ग्रस्त हैं।
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