हस्तौ मे कर्म वीर्यम्॥-यजुर्वेद, 20.7
कर्मठता और पुरुषार्थ मेरे दो हाथ हैं।
कर्म की महत्ता सर्वपरि है। सतत् कर्म करने वाला ही कर्मठ कहलाता है। सश्रम किया गया प्रयत्न ही पुरुषार्थ कहलाता है। कर्म करें, प्रयास करें, पर किसके लिए करें, क्यों करें, बिना लक्ष्य के करें तो सब व्यर्थ ही है। कर्मठता और पुरुषार्थ दो हाथ हैं इनके बल पर सभी अभीष्ट पाए जा सकते हैं।
कर्मठ बन जाना जीवन का इष्ट, पुरुषार्थी बनकर पाया अभीष्ट॥
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