तस्य भ्राता मध्यमो अस्त्यश्नः॥ - ऋग्वेद, १.१६३.११
ईश्वर का छोटा भाई जीवात्मा कर्मफल का भोक्ता है।
शरीर की चेतनता जीवात्मा से है। जीवात्मा ही कर्मफल भोगती है और ईश्वर की अनुज है। जो ध्यान द्वारा आत्मा को सदैव जगाते हैं और नित्य आत्मविश्लेषण करते हैं वे सीधे ईश्वर का सामीप्य पा जाते हैं, उनका आत्मबल उन्हें भटकने नहीं देता है। वे सत्य पथ पर चलने वाले पथिक बनकर जीवन में कुछ विशेष कर जाते हैं।
ध्यान लगाकर कर बन जा एकाग्र, आत्मबल बढ़े औ' जाये फिर जाग॥
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