स्वयं को समझ पाना बहुत कठिन है जिस दिन स्वयं को समझ लिया समझ लो स्वयं की सम्भावनाओं को ज्ञात कर लिया।
सम्भावनाएं जब तक ज्ञात नहीं होती व्यक्ति स्वयं की क्षमता का आभास नहीं कर पाता है।
क्षमता के अनरूप ही लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए वरना लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग अत्यन्त कठिन हो जाता है। सफलता भी अनिश्चित हो जाती है।
सफलता चाहिए तो जीवन में एक व्यवस्था चाहिए। व्यवस्था तभी आती है जब दिनचर्या नियमित होती है।
नियमित दिनचर्या के बिना जीवन में व्यवस्था सम्भव नहीं है।
यह जान लें कि व्यवस्थित जीवन ही सफलता का नियामक है।
आप सफलता चाहते हैं तो एक लक्ष्य निर्धारित करें जोकि आपकी योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप होना चाहिए।
समर्पण भावना से लक्ष्य तक पहुंचने के साधन जुटाएं और फिर उसी के अनुरूप प्रयास करेंगे तो लक्ष्य तक पहुंचना सरल व निश्चित होगा।
लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा के मध्य अनेक मील के पत्थर आएंगे। सदैव सकारात्मक सोच रखेंगे तो कभी भी बाधाओं से घबराएंगे नहीं।
समर्पण भावना से किया गया प्रयास सदैव सफलता दिलाता है।
निश्चय पक्का है तो साधन व प्रयास निश्चित रूप से सफलतादायी होंगे।
सफलता किसी की बपौती नहीं है, यह तो कोई भी पा सकता है। बात बस इतनी है कि इरादा पक्का हो और लक्ष्य अपनी योग्यताओं एवं सम्भावनाओं के अनुरूप हो। आलस्य न हो, निरन्तर प्रयास हो, समर्पण भावना पक्की हो।
ऐसा कदापि न करें कि कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही नकारात्मक सोच रखें, ऐसे में तो आप कार्य प्रारम्भ ही नहीं कर पाएंगे। कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व ही समाप्त हो जाएगा। आपको ऐसा नहीं करना है, आपको तो बस सकारात्मक सोच संग योजना का प्रारूप बनाना है और साधन जुटाकर लक्ष्य को पाने के लिए तत्पर होना है।
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