पुनन्ति धीरा अपसो मनीषा।-ऋग्वेद ३.८.५
धीर विचारपूर्वक प्रजाओं को पवित्र करते हैं।
धीर कौन होता है जो धैर्य को प्रश्रय देता है। धैर्यवान् होने से अर्थात् धीर होने से व्यक्ति दूरदर्शी हो जाता है जिस कारण उसे सदैव सफलता का साथ मिलता है, फलस्वरूप उन्नति उसका साथ पसन्द करती है जिस कारण वह एक से अधिक लोगों को सुमार्ग दिखाने में समर्थ बन जाता है। तभा वह सबकों पवित्र करता है।
धैर्य संग बनते जब धीर। हो सफल बन जाते तब वीर॥
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