बवासीर को अर्श, पाइल्स या हैमोराइड्स के नाम से जाना जाता है। यह रोग ७०प्रतिशित लोगों को होता है। इस रोग में मल त्याग करते समय गुदा द्वार से रक्त आना, शौच क्रिया में पीड़ा होना, मस्से बनना, मस्सों में पीड़ा, जलन एवं खुजली होना आदि हैं। दीर्घकाल तक कब्ज रहने के कारण यह रोग होता है।
कई दशक पूर्व यह रोग वृद्धावस्था में पाया जाता था पर अब तो यह युवाओं में भी पाया जाने लगा है। इसका मूल कारण अव्यवस्थित आहार-विहार का होना है। अधिक देर बैठकर कार्य करना, शौच को रोकना एवं दीर्घकाल तक कब्ज रहना इस रोग के कारण है। बवासीर दो प्रकार की होती है-बादी और खूनी। बादी बवासीर में मस्से केवल फूलकर बड़े हो जाते हैं। जब इन मस्सों में खून रिसने लगता है तो इसे खूनी बवासीर कहते हैं। बवासीर कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेती है। तब रोगी को अधिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। उपचार में सन्तुलित एवं रेशेदार आहार खाना चाहिए जिससे कब्ज हो ही नहीं और थोड़ा व्यायाम अवश्य करना चाहिए। रात्रिा के भोजन के बाद अवश्य टहलना चाहिए। लेख ज्योतिष का होने के कारण यहां बवासीर और ज्योतिष की चर्चा करेंगे।
कई दशक पूर्व यह रोग वृद्धावस्था में पाया जाता था पर अब तो यह युवाओं में भी पाया जाने लगा है। इसका मूल कारण अव्यवस्थित आहार-विहार का होना है। अधिक देर बैठकर कार्य करना, शौच को रोकना एवं दीर्घकाल तक कब्ज रहना इस रोग के कारण है। बवासीर दो प्रकार की होती है-बादी और खूनी। बादी बवासीर में मस्से केवल फूलकर बड़े हो जाते हैं। जब इन मस्सों में खून रिसने लगता है तो इसे खूनी बवासीर कहते हैं। बवासीर कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेती है। तब रोगी को अधिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। उपचार में सन्तुलित एवं रेशेदार आहार खाना चाहिए जिससे कब्ज हो ही नहीं और थोड़ा व्यायाम अवश्य करना चाहिए। रात्रिा के भोजन के बाद अवश्य टहलना चाहिए। लेख ज्योतिष का होने के कारण यहां बवासीर और ज्योतिष की चर्चा करेंगे।
ज्योतिष और बवासीर
मूलतः बवासीर का सम्बन्ध गुदा से है और कुंडली में आठवां भाव गुदा का होता है। आठवें भाव का कारक ग्रह शनि है। शनि दुष्प्रभाव में रहे तो गुदा सम्बन्धी रोग होता है। रक्त व पीड़ा का कारक मंगल है। बवासीर में रक्त व पीड़ा दोनों होते हैं। यदि मंगल भी दुष्प्रभाव में है तो रक्त बहेगा व पीड़ा भी होगी। मुख्य रूप से मंगल, शनि, लग्न, लग्नेश, अष्टम व अष्टमेश के दूषित रहने पर बवासीर का रोग होता है। रोग कब होगा इसके लिए रोगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा का विचार करते हैं।यहां बवासीर होने के कुछ ज्योतिष योग दे रहे हैं जिनको आप कुंडली में विचार कर यह ज्ञात कर सकते हैं कि अमुक कुंडली का जातक इस रोग से ग्रस्त होगा या नहीं। ये योग इस प्रकार हैं-
१. शनि ग्रह पर अशुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो।
२. द्वादश भाव में स्थित शनि पर मंगल और लग्नेश की दृष्टि पड़ती हो।
३. शनि लग्न में स्थित हो एवं मंगल सप्तम भाव में स्थित होकर उस पर पूर्ण दृष्टि डालता हो।
४. विभिन्न लग्नों में उक्त योग हो या ये योग हों तो बवासीर का रोग होता है।
मेष लग्न हो और शनि बारहवें हो, मंगल छठे हो एवं बुध अष्टम भाव में हो तो बवासीर का रोग होता है।
वृष लग्न हो गुरु चौथे हो, शनि दसवें हो, मंगल सप्तम भाव में हो तथा शुक्र आठवें हो तो जातक को बवासीर से कष्ट होता है।
मिथुन लग्न हो गुरु व शनि की युति अष्टम भाव में हो, बुध और मंगल की युति चतुर्थ भाव में हो तो जातक को बवासीर का रोग होता है।
कर्क लग्न हो शनि दसवें हो, मंगल पांचवे हो, बुध आठवें हो एवं चन्द्र-शुक्र की युति आठवें हो तो जातक को गुदा संबंधी रोग या बवासीर होती है।
सिंह लग्न हो शनि पहले भाव में हो, बुध-मंगल की युति सातवें भाव में हो, सूर्य छठे भाव में हो एवं शुक्र आठवें हो तो जातक को बवासरी होती है।
कन्या लग्न हो चन्द्र-मंगल आठवें में युत हों, शनि तीसरे भाव में, बुध बारहवें भाव में हो तो जातक को बवासीर का रोग अवश्य होता है।
तुला लग्न हो गुरु आठवें हो, शनि सातवें भाव में लग्नेश व मंगल के साथ युत हो, चन्द्र तीसरे भाव में हो तो जातक को गुदा रोग से पीड़ा होती है।
वृश्चिक लग्न हो मंगल दूसरे भाव में हो, शनि-बुध की युति आठवें भाव में हो, गुरु बारहवें भाव में हो तो जातक को गुदा संबंधी रोग होता है।
धनु लग्न हो मंगल आठवें, शनि एकादश में, शुक्र लग्न में, गुरु पांचवे हो तो गुदा रोग जातक को अवश्य होता है।
मकर लग्न हो गुरु पहले हो, बुध-शनि आठवें हो, मंगल पांचवे हो तो जातक को बवासीर अवश्य होती है।
कुंभ लग्न हो शनि एकादश में हो, मंगल पांचवे हो, गुरु-चन्द्र आठवें हो तो जातक को गुदा रोग अवश्य होता है।
मीन लग्न हो शनि आठवें भाव में बुध के साथ युत हो, मंगल-शुक्र पांचवे भाव में हो और गुरु एकादश भाव में हो तो जातक को गुदा रोग से कष्ट होता है।
यहां एक जातिका की कुंडली दे रहे हैं-
यहां एक जातिका की कुंडली दे रहे हैं-
उक्त कुंडली में अष्टमेश मंगल दूसरे भाव में सूर्य व बुध के साथ युत है एवं इस पर शनि की पूर्ण दृष्टि पड़ती है। लग्नेश बुध भी इस कुप्रभाव से ग्रस्त है। मंगल पर केतु की दृष्टि पड़ रही है। यह योग स्पष्ट रूप से बवासीर का द्योतक है। जातिका इस रोग से ग्रस्त रही और पीड़ा भी उठायी है।
जातिका को इस रोग से पीड़ा शनि में शनि, शनि में केतु की दशा में हुई।
जातिका को इस रोग से पीड़ा शनि में शनि, शनि में केतु की दशा में हुई।
आप भी किसी भी कुंडली देखकर यह जान सकते हैं कि अमुक व्यक्ति इस रोग से गस्त होगा या नहीं होगा तो उसे यह पीड़ा कब मिलेगी।
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