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सोमवार, सितंबर 28, 2009

मंगल की उत्पत्ति-सत्यज्ञ

भगवान्‌ वाराह ने रसातल से पृथ्वी का उद्धार कर उसको अपनी कक्षा में स्थापित कर दिया था। इसीलिए पृथ्वी देवी की उद्विग्नता मिट गई ओर वे स्वस्थ्य हो गईं। उनकी इच्छा भगवान को पति के रूप में पाने की हो गई। उस समय वाराह भगवान को तेज करोड़ों सूर्य के सदृश असह्य था। पृथ्वी की  देवी की कामना की पूर्ति के लिए भगवान वाराह अपने मनोरम रूप में आ गए और पृथ्वी देवी के साथ वे दिव्य वर्ष तक एकानत में रहे।
 इसके बाद वाराह रूप में आकर पृथ्वी देवी का पूजन किया। उस समय पृथ्वी देवी गर्भवती हो चुकी थीं, उन्होंने मंगल नामक ग्रह को जन्म दिया। विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएं हैं। आजकल पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेश पुराण में आती है।
पृथ्वी के पिता सूर्य और उसकी माता चन्द्र है। मंगल पृथ्वी का पुत्र है। सूर्य और चन्द्र इसके नाना-नानी हैं। ननिहाल के पूर्ण गुण भी इसमें हैं और पृथ्वी से संघर्ष कर यह उससे अलग हुआ है। अतः इसमें मारकतत्व भी है। सूर्य का तेजस्व और चन्द्र की शीतलता इसमें है। यह प्रबल साहसी है। शक्ति का नेतृत्व इसका प्रतीक है। उज्जैन में इसकी उत्पत्ति मानी गई है। यह चतुर्भुज रूप है। शूल, गदा आदि इसके शस्त्र हैं। यह भारद्वाज कुलीन क्षत्रिय है। मेष इसका वाहन है। इसका देवता कार्तिक स्वामी है। अग्नि तत्त्व होने के कारण वर्षा में चमकती बिजली के सदृश इसकी कांति है।
अहमवैवर्त पुराणानुसार एक बार भगवान्‌ विष्णु का अद्भुत सौन्दर्य देखकर पृथ्वी ने सुन्दर स्त्री का वेष धारण करके तेजस्वी पुत्रा की कामना हेतु प्रणय निवेदन किया। दोनों के संगम में स्त्रीरूपा पृथ्वी मूर्च्छित हो गई। विष्णु द्वारा उत्सर्जित रक्तवर्णीय वीर्य ही प्रवाल है। पृथ्वी द्वारा उत्पन्न उसका यह पुत्रा रक्तवर्णीय होने से अंगारक कहलाया।
मत्स्य पुराण के अनुसार एक अन्य कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष का विनाश करने के लिए कुपित हुए महादेव के ललाट से लालरंग के पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी। पृथ्वी उस तेज को सहन न कर सकी। वह बूंद सात पाताल, सात समुद्र का भेदन करके वीरभ्रद के रूप में परिवर्तित हो गई। दक्ष यज्ञ का विनाश करके वीरभ्रद पुनः शिव के सम्मुख उपस्थित हुआ। शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे ग्रह का रूप प्रदान किया और कहा-आज से तुम धरात्मज एवं अंगारक नाम से प्रसिद्ध होकर देवलोक में ग्रह के रूप में प्रसिद्ध हो जाओगे। जो व्यक्ति चतुर्थी एवं मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा करेगा उसे तुम उत्तम आयु, आरोग्य, अनन्त ऐश्वर्य देकर तृप्त करोगे।
स्कन्द पुराण में वर्णित मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करने से मंगल शीघ्र प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देते हैं। कोष्ठी प्रदीप नामक प्राचीन ग्रन्थ में कहा गया है-जो मंगलवार के दिन लग्न में मंगल लेकर उत्पन्न होगा, वह महान प्रतापी, उग्र, रणप्रिय, क्रोधी, सात्विक, शूरवीर एवं राज्यमन्त्री होगा।
मंगल का कारकतत्व है-मंगल भूमि, पराक्रम, विजय, कीर्ति, युद्ध, साहस का कारक, छोटे बडे-भाई बहिन, जीवन शक्ति, लाल नारंगी रंग, संघर्ष, आत्मबल, रक्त, रक्तविकार, चर्मरोग, तांबा, कामवासना, धैर्य, क्रोध, उत्तेजना, ठेकेदारी, निर्माण कार्य, भूमि का क्रय-विक्रय, ऋण यह सब मंगल में देखा जाता है।
मंगल के अधिदेवता स्कन्ध, प्रत्याधिदेवता पृथ्वी हैं। इसकी आकृति चतुष्कोणात्मक है। मंगल का गोत्र भारद्वाज है। इसका वैदिक मन्त्र है-अग्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथि व्यांऽअयम्‌। अपागंद्भरेतागंद्भसिजिन्वति॥ ओम्‌ भौमाय नमः।

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