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रविवार, सितंबर 13, 2009

वास्तु के स्वर्णिम ३५ सूत्र- पं. ज्ञानेश्वर




वास्तु सम्मत भवन आज सभी बनाना चाहते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण से पूर्व सलाह लेना आवश्यक समझने लगे हैं। यहां वास्तु के स्वर्णिम ३५ सूत्र की चर्चा करेंगे जिनको ध्यान में रखकर भवन बनाने से सुख, शान्ति व समृद्धि घर में निवास करती है। वास्तु के महत्वपूर्ण ३५ सूत्र इस प्रकार हैं-

१. भूखण्ड का ढलान उत्तर व पूर्व दिशा में हो तो शुभ है। यह जान लें कि पूर्व एवं उत्तर दिशा सदैव नीची होनी चाहिएं।
२. भूखण्ड के दक्षिण या पश्चिम में ऊंचे भवन, पहाड़, टीले या पेड़ शुभ माने जाते हैं।
३. भूखण्ड के पूर्व या उत्तर में नदी या नहर, जल का स्थान या नीचा होना शुभ है। पानी का बहाव उत्तर या पूर्व की ओर होना अत्यन्त शुभ है।
४. भवन में उत्तर व पूर्व दिशा का भाग नीचा व खुला होना चाहिए जबकि दक्षिण व पश्चिम वाला भाग ऊंचा एवं भारी होना चाहिए व खुला नहीं होना चाहिए। भवन का दक्षिणी भाग सदैव उत्तर भाग से ऊंचा रहना चाहिए। इसी प्रकार भवन का पश्चिम भाग सदैव पूर्वी भाग से ऊंचा रहना चाहिए।
५. भूखण्ड का आकार वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए।
६. भूखण्ड की चौड़ाई से लम्बाई दुगने से अधिक नहीं होनी चाहिए।
७. गोमुखी भूखण्ड गृह वास्तु के लिए शुभ होता है।
८. शेरमुखी भूखण्ड व्यावसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है।
९. दो बड़े भूखण्डों के मध्य भूखण्ड होना शुभ नहीं है।
१०. दो बड़े भवनों के मध्य दबा हुआ भवन होना शुभ नहीं है। इसलिए ऐसा भवन न बनाएं और न खरीदें।
११. वृत्ताकार भुखण्ड में वृ+त्ताकार निर्माण हो तो शुभ होता है।
१२. भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में विस्तार शुभ माना जाता है।
१३. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खंभा व गड्ढा शुभ नहीं माना जाता है। भवन के सम्मुख वेध नहीं होना चाहिए।
१४. आवासीय भूखण्ड में बेसमेन्ट नहीं बनाना चाहिए। बेसमेन्ट बनाना हो तो उत्तर पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुए बनाना शुभ है। बेसमेन्ट की ऊंचाई अल्पतम ९फुट हो और तीन फुट तल से ऊपर हो जिसे प्रकाश और हवा आ जा सके।
१५. प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई १२फुट रखनी चाहिए। १०फुट से कम तो रखनी चाहिए।
१६. भवन में नैऋत्य दिशा का भाग सबसे ऊंचा एवं ईशान दिशा का भाग सबसे नीचा होना चाहिए।
१७. द्वार की ऊंचाई चौड़ाई से दुगनी होनी चाहिए। मान लो चौड़ाई ३फुट है तो ऊंचाई ६फुट होनी चाहिए।
१८. भोजन सदैव पूर्व या उत्तर मुख होकर ही करना चाहिए।
१९. मल करते समय मुख उत्तर या दक्षिण में होना चाहिए।
२०. उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए। सदैव दक्षिण की ओर सिर करके सवेम चाहिए।
२१. नैऋत्य में किरायेदार एवं अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए।
२२. पूजाघर ईशान कोण में ही बनाना चाहिए। पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व की ओर होना चाहिए। पूर्वोत्तर मुखी होकर पूजा करने से पूजा का फल शतप्रतिशत मिलता है।
२३. घर में पश्चिम दिशा में भोजनकक्ष, सीढ़ियां व शौचालय बनाया जा सकता है।
२४. सीढ़ियां उत्तर या ईशान में नहीं बनानी चाहिएं।
२५. शौचालय भी ईशान में कदापि नहीं बनाना चाहिए।
२६. बोरिंग उत्तर या ईशान कोण में कर सकते हैं।
२७. घर का भारी सामान नैऋत्य, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए जबकि हल्का सामान उत्तर पूर्व या ईशान में रखना चाहिए।
२८. बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिए।
२९. खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिएं।
३०. भवन में खिड़कियों व द्वार की संख्या सम होनी चाहिए। द्वार की संख्या गिनते समय मुख्य द्वार को नहीं गिनना चाहिए।
३१. दीवारों की मोटाई सबसे अधिक दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में एवं उससे कम उत्तर में एवं सबसे कम पूर्व में रखनी चाहिए।
३२. ब्रह्म स्थान को खुला, साफ एवं हवादार रखना चाहिए।
३३. सीढ़ियों के नीचे पूजाघर, रसोई में पूजाघर कदापि नहीं बनाना चाहिए।
३४. तिजोरी या धन की अलमारी दक्षिणी दीवार के साथ रखनी चाहिए और उसका दरवाजा उत्तर की ओर खुलना चाहिए। धन रखने के स्थान पर उत्तर से कुबेर की दृष्टि अवश्य पड़नी चाहिए।
३५. घर पर पूजा स्थान पर मूर्तियों की स्थापना नहीं करनी चाहिए, वरना सन्तान को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अतः इसका अवश्य ध्यान रखें।

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