एक राजा था। उसकी लालसा संसार का सर्वाधिक धनी बनने की थी। एक बार की बात है कि एक सिद्ध पुरुष उसके यहां पहुंच गए। राजा ने उनका खूब आदर सत्कार किया।
स्वागत् से प्रसन्न होकर उन्होंने राजा से कहा-'प्रिय राजन! हम तुम्हारे आदर-सत्कार से अत्यन्त प्रसन्न हुए। वत्स कोई वर मांगना हो तो मांग लो।'
सिद्ध पुरुष की बात सुनकर राजा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए। वे धनी बनना चाहते ही थे। बिना सोचे-समझे जल्दी में बोल पड़े-'आप प्रसन्न हैं तो मुझे ऐसा वर दीजिए कि मैं जिस भी वस्तु को छू लूं, वह सोना हो जाए।'
सिद्ध पुरुष तो अन्तर्यामी थे। वे राजा के मन की बात समझ गए और उन्होंने तुरन्त वरदान दे दिया।
राजा प्रसन्न था कि उसे वरदान मिल गया। अब मैं जिस वस्तु को चाहूं सोना बना लूं। अब तो ऐसा हो गया कि राजा जिस वस्तु को भी छूता वह सोना बन जाता। राज भूख से व्याकुल होकर खाने की किसी वस्तु को हाथ लगाता तो वो भी सोना बन जाते। राजा को अपनी जल्दबाजी पर पछतावा होने लगा और वे बोले जल्दबाजी सदैव अहितकर होती है। मैंने भी जल्दबाजी में स्वयं अनर्थ मोल ले लिया।
स्वागत् से प्रसन्न होकर उन्होंने राजा से कहा-'प्रिय राजन! हम तुम्हारे आदर-सत्कार से अत्यन्त प्रसन्न हुए। वत्स कोई वर मांगना हो तो मांग लो।'
सिद्ध पुरुष की बात सुनकर राजा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए। वे धनी बनना चाहते ही थे। बिना सोचे-समझे जल्दी में बोल पड़े-'आप प्रसन्न हैं तो मुझे ऐसा वर दीजिए कि मैं जिस भी वस्तु को छू लूं, वह सोना हो जाए।'
सिद्ध पुरुष तो अन्तर्यामी थे। वे राजा के मन की बात समझ गए और उन्होंने तुरन्त वरदान दे दिया।
राजा प्रसन्न था कि उसे वरदान मिल गया। अब मैं जिस वस्तु को चाहूं सोना बना लूं। अब तो ऐसा हो गया कि राजा जिस वस्तु को भी छूता वह सोना बन जाता। राज भूख से व्याकुल होकर खाने की किसी वस्तु को हाथ लगाता तो वो भी सोना बन जाते। राजा को अपनी जल्दबाजी पर पछतावा होने लगा और वे बोले जल्दबाजी सदैव अहितकर होती है। मैंने भी जल्दबाजी में स्वयं अनर्थ मोल ले लिया।
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