सफलता उसको मिलती है जिसके भीतर पाने की इच्छा होती है।
सफलता पाने की इच्छा के साथ-साथ सफलता पाने की रीति मालूम होनी चाहिए।
इसके बाद आपको तब तक निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए जब तक सफलता न मिले।
सफलता पाने की चाह ही काफी नहीं है। उसके लिए प्रयत्न करना अनिवार्य है। ऐसा भी नहीं है कि आप प्रयत्न नहीं करते हैं। प्रयत्न करते हैं, करते ही जाते हैं, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं। दरअसल होता यह है कि हम बेतहाशा प्रयत्न करते जाते हैं, लेकिन अपने दोषों और कमियों को दूर करना नहीं भूल जाते हैं।
अतीत को विस्मरण कर बैठते हैं, उसकी जांच-पड़ताल करना ही नहीं चाहते हैं। अतीत की जांच-पड़ताल हमें बहुत कुछ सिखाती है। प्रत्येक असफलता एक नया पाठ सिखाती है यानि सफलता का एक सूत्र देती है।
किसी भी योजना को पूर्ण करने के लिए दो प्रकार होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। कहने का तात्पर्य यह है कि धनी बनने के लिए या तो आय बढ़ाएं या व्यय घटाएं। इसी प्रकार आप उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं तो आपको कार्य की अवधि बढ़ानी होगी या फिर कार्य की समस्त विघ्नों या व्यर्थ के विलम्ब को दूर करना होगा।
सफलता के प्रदेश की यात्रा प्रारम्भ करने से पूर्व अपनी समस्त दुर्गुणों, कमियों और समस्त नकारात्मक विचारों व पछतावों को त्याज्य देना चाहिए। मन में सफलता पाने का दृढ़ विश्वास होना चाहिए। आपको इस यात्रा में सफल्ाता मिले इसलिए परमात्मा को अपना सहयोगी अवश्य मानें क्योंकि ऐसा करने से आपमें एक विश्वास उत्पन्न होता है। जब आपके मन में होगा कि मुझे सफलता अवश्य मिलेगी और प्रयत्न्ा भी योजना बद्ध होगा तो ईश्वर आपका अपने आप सहयोगी बन जाएगा और आपको सफलता के प्रदेश की यात्रा कराकर ही मानेगा।
सफलता पाने की इच्छा के साथ-साथ सफलता पाने की रीति मालूम होनी चाहिए।
इसके बाद आपको तब तक निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए जब तक सफलता न मिले।
सफलता पाने की चाह ही काफी नहीं है। उसके लिए प्रयत्न करना अनिवार्य है। ऐसा भी नहीं है कि आप प्रयत्न नहीं करते हैं। प्रयत्न करते हैं, करते ही जाते हैं, लेकिन फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं। दरअसल होता यह है कि हम बेतहाशा प्रयत्न करते जाते हैं, लेकिन अपने दोषों और कमियों को दूर करना नहीं भूल जाते हैं।
अतीत को विस्मरण कर बैठते हैं, उसकी जांच-पड़ताल करना ही नहीं चाहते हैं। अतीत की जांच-पड़ताल हमें बहुत कुछ सिखाती है। प्रत्येक असफलता एक नया पाठ सिखाती है यानि सफलता का एक सूत्र देती है।
किसी भी योजना को पूर्ण करने के लिए दो प्रकार होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। कहने का तात्पर्य यह है कि धनी बनने के लिए या तो आय बढ़ाएं या व्यय घटाएं। इसी प्रकार आप उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं तो आपको कार्य की अवधि बढ़ानी होगी या फिर कार्य की समस्त विघ्नों या व्यर्थ के विलम्ब को दूर करना होगा।
सफलता के प्रदेश की यात्रा प्रारम्भ करने से पूर्व अपनी समस्त दुर्गुणों, कमियों और समस्त नकारात्मक विचारों व पछतावों को त्याज्य देना चाहिए। मन में सफलता पाने का दृढ़ विश्वास होना चाहिए। आपको इस यात्रा में सफल्ाता मिले इसलिए परमात्मा को अपना सहयोगी अवश्य मानें क्योंकि ऐसा करने से आपमें एक विश्वास उत्पन्न होता है। जब आपके मन में होगा कि मुझे सफलता अवश्य मिलेगी और प्रयत्न्ा भी योजना बद्ध होगा तो ईश्वर आपका अपने आप सहयोगी बन जाएगा और आपको सफलता के प्रदेश की यात्रा कराकर ही मानेगा।
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