सबसे बड़ा बल आत्मबल है! आत्मबल के बिना बलवान होना महत्वपूर्ण नहीं है, आवश्यक है बल का सदुपयोग करने की कुशलता से ही सामर्थ्य का लाभ उठाया जाता है। बल और साधन के दुरूपयोग से निश्चित रूप से हानि ही होती है जोकि सबकुछ नष्ट कर देती है। आत्मबल की आवश्यकता सभी उपलब्ध शक्तियों के ऊपर नियन्त्रण करने के लिए होती है।
हमारे जड़ शरीर में चेतन आत्मा विद्यमान है। आत्मबल आत्मा का बल है। उन्नति हेतु आत्मबल आवश्यक है। शरीरिक बल की महत्ता तभी सार्थक होती है जब उसके साथ आत्मबल जुड़ता है। विश्व के समस्त अग्रणीय लोग आत्मविश्वासी होते हैं। आत्मविश्वास आत्मबल से ही उपजता है। आत्मविश्वासी के पास उत्साह होता है और वह पूर्ण उत्साह के साथ समर्पण भाव से कार्यरत रहता है, उसके समक्ष उसका लक्ष्य होता है, जिसे पूर्ण करना ही सर्वपरि होता है। जीवन में किसी भी क्षेत्र में उन्नति के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। आत्मा से मिलता है आत्मविश्वास। आत्मा में विश्वास करना ही स्वयं में विश्वास करना है और इसका प्रतिफल है आत्मविश्वास। जो आत्मा पर विश्वास करता है वह परमात्मा पर विश्वास करता है। ऐसे में उसे परम शक्ति का सहारा मिल जाता है और फिर उसके पास किसी बात की कमी नहीं रहती है। उसका स्वयं पर विश्वास बढ़ता जाता है जिस कारण योग्यता और कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
जितना बड़ा लक्ष्य बनाएंगे उतना लम्बा मार्ग होगा उस तक पहुंचने का। ऐसे में अधिक आत्मविश्वास की आवश्यकता होगी। आपके पास जितना आत्मविश्वास होगा उतना आपका स्वयं और अपनी योग्यता पर विश्वास होगा। प्रबल आत्मविश्वास सफलता की गारन्टी है और लक्ष्य तक पहुंचने का प्रमाणपत्र। आत्मविश्वास से प्रतिकूल परिस्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा भी है कि आत्मविश्वास सदृश दूसरा मित्र नहीं, आत्मविश्वास के कारण दुर्गम पथ भी सुगम बन जाते हैं, बाधाएं भी मंजिल तक पहुंचने की सीढि़यां बन जाती हैं। शरीर और मन की शक्तियां आत्मविश्वासी के ईशारे पर नाचती हैं। यह सत्य है कि जो आत्मविश्वासी और आत्मनिर्णायक है, उसी के पास अपनी बुद्धि और विवेक होता है, ऐसे में ये आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनकर उन्नति पथ पर अग्रसर होते हुए सफल एवं सन्तुष्ट होते हैं। कठिनाईयां इनके मार्ग से स्वयं हटती जाती हैं और उन्नति इनके चरणों में लोटने लगती है। मूलत: आत्मबल बढ़ाएं और लक्ष्य संग जीएं, सबकुछ मुट्ठी में होगा।
हमारे जड़ शरीर में चेतन आत्मा विद्यमान है। आत्मबल आत्मा का बल है। उन्नति हेतु आत्मबल आवश्यक है। शरीरिक बल की महत्ता तभी सार्थक होती है जब उसके साथ आत्मबल जुड़ता है। विश्व के समस्त अग्रणीय लोग आत्मविश्वासी होते हैं। आत्मविश्वास आत्मबल से ही उपजता है। आत्मविश्वासी के पास उत्साह होता है और वह पूर्ण उत्साह के साथ समर्पण भाव से कार्यरत रहता है, उसके समक्ष उसका लक्ष्य होता है, जिसे पूर्ण करना ही सर्वपरि होता है। जीवन में किसी भी क्षेत्र में उन्नति के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। आत्मा से मिलता है आत्मविश्वास। आत्मा में विश्वास करना ही स्वयं में विश्वास करना है और इसका प्रतिफल है आत्मविश्वास। जो आत्मा पर विश्वास करता है वह परमात्मा पर विश्वास करता है। ऐसे में उसे परम शक्ति का सहारा मिल जाता है और फिर उसके पास किसी बात की कमी नहीं रहती है। उसका स्वयं पर विश्वास बढ़ता जाता है जिस कारण योग्यता और कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
जितना बड़ा लक्ष्य बनाएंगे उतना लम्बा मार्ग होगा उस तक पहुंचने का। ऐसे में अधिक आत्मविश्वास की आवश्यकता होगी। आपके पास जितना आत्मविश्वास होगा उतना आपका स्वयं और अपनी योग्यता पर विश्वास होगा। प्रबल आत्मविश्वास सफलता की गारन्टी है और लक्ष्य तक पहुंचने का प्रमाणपत्र। आत्मविश्वास से प्रतिकूल परिस्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा भी है कि आत्मविश्वास सदृश दूसरा मित्र नहीं, आत्मविश्वास के कारण दुर्गम पथ भी सुगम बन जाते हैं, बाधाएं भी मंजिल तक पहुंचने की सीढि़यां बन जाती हैं। शरीर और मन की शक्तियां आत्मविश्वासी के ईशारे पर नाचती हैं। यह सत्य है कि जो आत्मविश्वासी और आत्मनिर्णायक है, उसी के पास अपनी बुद्धि और विवेक होता है, ऐसे में ये आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनकर उन्नति पथ पर अग्रसर होते हुए सफल एवं सन्तुष्ट होते हैं। कठिनाईयां इनके मार्ग से स्वयं हटती जाती हैं और उन्नति इनके चरणों में लोटने लगती है। मूलत: आत्मबल बढ़ाएं और लक्ष्य संग जीएं, सबकुछ मुट्ठी में होगा।
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