मन की शक्ति अनमोल है। किसी को अभिप्रेरित करते समय भी यही इच्छा करनी चाहिए कि अमुक व्यक्ति मेरे पास आ रहा है, वह अवश्य मेरे पास आएगा या अमुक को मेरी बात माननी ही होगी।
यह शक्ति कैसे प्राप्त होती है। इसे प्राप्त करने के लिए सबसे पहले इन चारों को सिद्ध करना होगा, ये चार हैं-
1. भय, 2. विश्वास, 3. सद्भावना एवं 4. ईश्वर कृपा।
1. भय-भय का त्याग करना होगा। भय से विपत्ति आती है, भय से शरीर पीला पड़ जाता है एवं मनोबल कम हो जाता है। मनोबल कम होने से मन अस्थिर हो जाता है।
2. विश्वास-विश्वास में बहुत बल होता है। किसी भी बात पर या किसी भी इच्छा को चाहने से पूर्व हमें यह अवश्य निश्चय कर लेना चाहिए कि अमुक कार्य वैसा ही होगा जैसा मैं कहूँगा।
3. सद्भावना-संकल्प शक्ति के पार्श्व में सद्भावना होनी चाहिए। सद्भावना के बिना इस शक्ति का सदुपयोग सम्भव नहीं है। यह जान लें कि संकल्प शक्ति किसी को कष्ट देने या किसी का विनाश करने के लिए नहीं है। यह शक्ति आत्मरक्षा के लिए है। इसलिए सद्भावना आवश्यक है और निष्ठापूर्वक अच्छी-अच्छी बातों का की संकल्प करना चाहिए। सुसंकल्प ही सिद्ध होते हैं और उनमें संकल्प शक्ति भी अटूट एवं प्रभावी होती है।
4. ईश्वर कृपा-किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए ईश्वर कृपा अवश्य चाहिए। उसकी कृपा के बिना कार्य बन पाना सम्भव नहीं है। ईश्वर कृपा से साधक को हर समय यह महसूस करना चाहिए कि मुझ पर ईश्वर की अत्यन्त कृपा है। वह दयालु है, वह मुझ पर अनवरत कृपा कर रहा है।
इच्छा शक्ति की क्रिया
आप सोच रहे होंगे कि इच्छा शक्ति का प्रयोग कैसे करें? इसकी क्रिया क्या होगी? जब मन की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा इच्छा-शक्ति का निर्माण हो गया है तो फिर उसका किस प्रकार प्रयोग किया जाए।
इच्छा शक्ति द्वारा अपने विचार दूसरों तक किस प्रकार पहुंचाए जाएं। आपने बचपन में ऐसा अवश्य किया होगा, नदी या झील में एक कंकड़ दाल देने से उसमें तरंगे उठने लगती हैं। इसी प्रकार शब्द की तरंगे भी दूर-दूर तक फैलकर सारे अन्तरिक्ष में फैल जाती हैं और कभी नष्ट नहीं होती हैं। यह कार्य वायुमण्डल में व्याप्त ईथर करता है। कहते भी अक्षर अर्थात् जिसका क्षय न हो वही अक्षर है। शब्द अक्षरों का ही समूह होता है। वायुमण्डल में व्याप्त ध्वनियों को विशेष यन्त्र द्वारा पकड़कर रिकार्ड किया जा सकता है। शब्द वायुमण्डल में उसी प्रकार का स्वर या ध्वनि उत्पन्न करता है जिस प्रकार नदी में डाले गए कंकड़ से तरंगे उठने लगती हैं।
वस्तुतः स्पष्ट है कि आप जीवन रूपी नदी में जिस प्रकार के संकल्प डालेंगे, उसी प्रकार की लहरों का उद्वेलन होगा। यह सब जानते हैं कि सीप में स्वाति-बूंद के पहुंचने से मोती बन जाता है। मन भी एक सीप है, उसमें संकल्प रूपी स्वाति बूंद डालने से सात्त्िवक संकल्प का निर्माण होगा जिससे जो चाहे वो सिद्ध करने की सामर्थ्य आ जाएगी।
निष्कर्षतः आप यह कह सकते हैं कि उज्ज्वल भविष्य हेतु लक्ष्य की प्राप्ति में सतत् प्रयत्न हेतु दृढ़ संकल्प सफलता का सोपान है! उन्नति का पथ ही विकास मार्ग है और इस मार्ग पर कठिनाईयां की कंकरीट बिछी हुई है। जो व्यक्ति जीवन में कठिनाईयों से घबराता है, उसे उन्नति पथ पर जाने की आकांक्षा कदापि नहीं करनी चाहिए। उन्नति का अर्थ है-ऊंचाई। यह सभी जानते हैं कि ऊंचाई पर चढ़ने के लिए अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। उन्नति पथ ऐसा ही है और यदि यह कठिनाईयों की कंकरीट से रहित होता तो सभी उन्नति कर जाते। कार्य के प्रारम्भ करने से पूर्व यदि मन में दृढ़ संकल्प हो तो धैर्य सहित किया गया प्रयास से कठिनाईयां स्वतः दूर हो जाती हैं। अतः यह जान लें कि संकल्प की शक्ति अटूट है और इसकी प्रतिक्रिया इतनी प्रचण्ड है कि कार्य की पूर्णतः निश्चित है। इसीलिए ऐसा साधक जिसकी संकल्प शक्ति अटूट एवं प्रबल है, वह अपने कार्य मनोनुरूप बना लेता है।
3. सद्भावना-संकल्प शक्ति के पार्श्व में सद्भावना होनी चाहिए। सद्भावना के बिना इस शक्ति का सदुपयोग सम्भव नहीं है। यह जान लें कि संकल्प शक्ति किसी को कष्ट देने या किसी का विनाश करने के लिए नहीं है। यह शक्ति आत्मरक्षा के लिए है। इसलिए सद्भावना आवश्यक है और निष्ठापूर्वक अच्छी-अच्छी बातों का की संकल्प करना चाहिए। सुसंकल्प ही सिद्ध होते हैं और उनमें संकल्प शक्ति भी अटूट एवं प्रभावी होती है।
4. ईश्वर कृपा-किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए ईश्वर कृपा अवश्य चाहिए। उसकी कृपा के बिना कार्य बन पाना सम्भव नहीं है। ईश्वर कृपा से साधक को हर समय यह महसूस करना चाहिए कि मुझ पर ईश्वर की अत्यन्त कृपा है। वह दयालु है, वह मुझ पर अनवरत कृपा कर रहा है।
इच्छा शक्ति की क्रिया
आप सोच रहे होंगे कि इच्छा शक्ति का प्रयोग कैसे करें? इसकी क्रिया क्या होगी? जब मन की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा इच्छा-शक्ति का निर्माण हो गया है तो फिर उसका किस प्रकार प्रयोग किया जाए।
इच्छा शक्ति द्वारा अपने विचार दूसरों तक किस प्रकार पहुंचाए जाएं। आपने बचपन में ऐसा अवश्य किया होगा, नदी या झील में एक कंकड़ दाल देने से उसमें तरंगे उठने लगती हैं। इसी प्रकार शब्द की तरंगे भी दूर-दूर तक फैलकर सारे अन्तरिक्ष में फैल जाती हैं और कभी नष्ट नहीं होती हैं। यह कार्य वायुमण्डल में व्याप्त ईथर करता है। कहते भी अक्षर अर्थात् जिसका क्षय न हो वही अक्षर है। शब्द अक्षरों का ही समूह होता है। वायुमण्डल में व्याप्त ध्वनियों को विशेष यन्त्र द्वारा पकड़कर रिकार्ड किया जा सकता है। शब्द वायुमण्डल में उसी प्रकार का स्वर या ध्वनि उत्पन्न करता है जिस प्रकार नदी में डाले गए कंकड़ से तरंगे उठने लगती हैं।
वस्तुतः स्पष्ट है कि आप जीवन रूपी नदी में जिस प्रकार के संकल्प डालेंगे, उसी प्रकार की लहरों का उद्वेलन होगा। यह सब जानते हैं कि सीप में स्वाति-बूंद के पहुंचने से मोती बन जाता है। मन भी एक सीप है, उसमें संकल्प रूपी स्वाति बूंद डालने से सात्त्िवक संकल्प का निर्माण होगा जिससे जो चाहे वो सिद्ध करने की सामर्थ्य आ जाएगी।
निष्कर्षतः आप यह कह सकते हैं कि उज्ज्वल भविष्य हेतु लक्ष्य की प्राप्ति में सतत् प्रयत्न हेतु दृढ़ संकल्प सफलता का सोपान है! उन्नति का पथ ही विकास मार्ग है और इस मार्ग पर कठिनाईयां की कंकरीट बिछी हुई है। जो व्यक्ति जीवन में कठिनाईयों से घबराता है, उसे उन्नति पथ पर जाने की आकांक्षा कदापि नहीं करनी चाहिए। उन्नति का अर्थ है-ऊंचाई। यह सभी जानते हैं कि ऊंचाई पर चढ़ने के लिए अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। उन्नति पथ ऐसा ही है और यदि यह कठिनाईयों की कंकरीट से रहित होता तो सभी उन्नति कर जाते। कार्य के प्रारम्भ करने से पूर्व यदि मन में दृढ़ संकल्प हो तो धैर्य सहित किया गया प्रयास से कठिनाईयां स्वतः दूर हो जाती हैं। अतः यह जान लें कि संकल्प की शक्ति अटूट है और इसकी प्रतिक्रिया इतनी प्रचण्ड है कि कार्य की पूर्णतः निश्चित है। इसीलिए ऐसा साधक जिसकी संकल्प शक्ति अटूट एवं प्रबल है, वह अपने कार्य मनोनुरूप बना लेता है।
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