प्रकृति में अन्त:चेतना होती है!
प्रकृति में अन्त:चेतना होती है जिसे आप गहन रूप से निरीक्षण करने पर अनुभूत कर सकते हैं।
अन्त:चेतना पग-पग पर हमें शुभाशुभ का ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करती है। समस्त अज्ञान को ज्ञान में परिवर्तित करने की सामर्थ्य देती है। अन्त:चेतना अन्धकार(अज्ञान) को प्रकाश(ज्ञान) से आलोकित करके सत्य स्वरूप के दर्शन कराती है। अन्त:चेतना आपके अद़श्य नेत्र हैं इन्हें जितना साफ(शुद्ध, वासना रहित) रखेंगे उतना आत्म-शक्ति को सन्निकट पाएंगे। जिस प्रकार नेत्र में कुछ पड़ जाने पर धुंधला दिखाई पड़ता है उसी प्रकार अन्त:करण शुद्ध न हो तो पथ-भ्रष्ट होने की सम्भावना अधिक रहती है। अन्त:चेतना विवेक संग जाग्रत रहती है और इसी रूप में ईश्वर आपमें बसता है। उसके दर्शन तभी हो सकते हैं जबकि अन्त:करण स्वच्छ एवं निर्मल हो। अन्त:चेतना से आत्म-शक्ति अर्थात् आत्मबल प्राप्त होता है और इसके बढ़ने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है एवं मानसिक स्थिरता व दृढ़-प्रतिज्ञ होने की सामर्थ्य भी बढ़ जाती है। यह सब होने के साथ-साथ अदृश्य नेत्र रूपी अन्त:चेतना भी पग-पग पर ज्ञान रश्मियां छिटकाकर सचेत करती रहती है। यह योग्यता प्रकृति का गहन रूप से निरीक्षण करने पर स्वत: आती है, जो समृद्ध होने के मार्ग को सहज बनाती है। आपको तो मात्र प्रकृति की अन्त:चेतना को अनुभूत करते रहना है। (क्रमश:)
(आप समृद्धि के रहस्य से वंचित न रह जाएं इसलिए ज्योतिष निकेतन सन्देश पर प्रतिदिन आकर 'समृद्ध कैसे बनें' सीरीज के लेख पढ़ना न भूलें! ये लेख आपको सफलता का सूत्र दे सकते हैं, इस सूत्र के अनुपालन से आप समृद्ध बनने का सुपथ पा सकते हैं!)
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