आस रखता जो किसी से वो बने नहीं समर्थ।
राग रंग में डूबकर, जीवन जाता व्यर्थ।।1।।
राग द्वेष से जो बचा, बन गया वो निर्झर।
कुछ पाने के लिए रहो न किसी पर निर्भर।।2।।
मन की बात कहो पर राज को समझो राज।
जीवन में सफलता के लिए अनुपम साज।।3।।
राग द्वेष औ' मोह तो हैं मनुज के दोष।
जब मिले न इनसे मुक्ति तो फिर कैसा रोष।।4।।
कभी नहीं अलापना चाहिए अपना राग।
सुनता न फिर कोई बात, समझ कर काग।।5।।
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