यह जान लें कि प्राणायाम से बल पुरुषार्थ बढ़कर बुद्धि तीव्र व सूक्ष्म हो जाती है। शरीर में वीर्य वृद्धि हो कर स्थिर बल, पराक्रम और जितेंद्र्रियता होती है। चित्त निर्मल होकर उपासना में स्थिर होता है। भगवद्गीता के अध्याय पांच व श्लोक 27 में कहा है-
स्पर्शान् कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुः चैवान्तरे भ्रुवोः। प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तर चारिणौ॥
स्पष्ट है कि बाह्य विषय, रूप, रस, गंध आदि का त्याग कर मन को अन्दर की ओर एकाग्र करें और दोनों भौहों के मध्य जिसे त्रिकुटि कहते हैं, वहां ध्यान को स्थिर करना चाहिए। नासिका छिद्रों द्वारा ही संचार करने वाले प्राण और अपान दोनों वायु को समान करके , जो कोई विेवेकशील योगी मन, इंन्द्रियों एवं बुद्धि को वश में करने वाला, सतत मोक्ष मार्ग में तत्पर, इच्छा, भय एवं क्रोध से रहित होता है, वह सदा मुक्त ही है।
प्राणों को धारण करना ही जीवन है और प्राणों का त्याग ही विसर्जन या मृत्यु है। हमारे ग्रन्थों में प्राण की अनन्त महिमा गायी गई है।
अथर्ववेद में कहा है कि प्राणापानौ मृत्योर्मा पातं स्वाहा अर्थात् प्राण और अपान ये दोनों मेरी मृत्यु से रक्षा करें।
मनु ने कहा है कि दह्यन्ते ध्मायमानानां धातूना हि यथा मलाः। तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहात्॥ अर्थात् जैसे अग्नि आदि में तपाने से सुवर्ण आदि धातुओं के मल, विकार नष्ट हो जाते हैं वैसे ही प्राणायाम से इन्द्रियां व मन के दोष दूर होते हैं।
प्राण व मन का घनिष्ठ संबंध है। प्राणायाम करने से मन स्वतः एकाग्र हो जाता है।
प्राणायाम करने से मन के ऊपर आया हुआ उसत, अविद्या व क्लेश रूपी तमस का आवरण क्षीण हो जाता है। शुद्ध हुए मन में धारणा स्वतः होने लगती है और फिर योग की उन्नत स्थितियों ध्यान व समाधि की ओर बढ़ा जाता है।
योगासनों से स्थूल शरीर की विकृतियों को दूर किया जाता है। सूक्ष्म शरीर पर योगासनों की अपेक्षा प्राणायाम का विशेष प्रभाव पड़ता है। प्राणायाम से सूक्ष्म के साथ-साथ स्थूल शरीर पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है।
हमारे शरीर में फेफड़ों, हृदय एवं मस्तिष्क का विशेष स्थान और महत्त्व है और इन तीनों का परस्पर स्वास्थ्य से विशेष संबंध है।
स्थूलतः प्राणायाम श्वास-प्रश्वास के व्यायाम की एक पद्धति है, जिससे फेफड़े बलिष्ट होते हैं। रक्त संचार की व्यवस्था सुधरने से समग्र आरोग्य प्राप्त होता है और दीर्घायु लाभ होता है। फेफड़े ठीक कार्य करते हैं तो प्रत्येक कोशिका में जीवनीय ऊर्जा की उत्पत्ति ऑक्सीजन के द्वारा होती रहती है। यदि भरपूर ऑक्सीजन न मिल तो कोशिकाओं में वैषम्य और व्याधि होती है।
अधिकांश लोग गहरी श्वास लेने के अभ्यस्त नहीं होते जिससे फेफड़ों का लगभग एक चौथाई भाग ही कार्य करता है और शेष तीन चौथाई भाग निष्क्रिय पड़ा रहता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते सदृश सात करोड़ तीस लाख स्पंज जैसे कोष्ठक होते हैं। सामान्य श्वास लेने पर लगभग दो करोड़ छिद्रों में ही प्राणवायु का संचार होता है और शेष कोष्ठकों तक प्राणवायु नहीं पहुंच पाती है। इसी कारण उनमें जड़ता रूप विजातीय द्रव्य जमने लगता है और शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता भी कम हो जाती है और टीबी जैसा भंयकर रोग भी हो जाता है।
जब फेफड़े अधूरे होंगे तो शरीर की रक्त शुद्धि पर अत्यन्त कुप्रभाव पड़ेगा जिसके फलस्वरूप अकाल मृत्यु भी उपस्थित रह सकती है। इससे स्पष्ट है कि प्राणायाम की महत्ता सर्वपरि है। विभिन्न रोगों का निवारण प्राण वायु नियमन प्राणायाम द्वारा करने से हो सकता है।
मानव प्राण वायु के नियन्त्रण द्वारा सुखी एवं आनन्द पूर्ण जीवन जी सकता है। जीवन में एक व्यवस्था भी आ जाती है।
उद्वेग, चिन्ता, क्रोध, निराशा, भय और कामुकता आदि मनोविकारों का समाधान प्राणायाम द्वारा सरलता से किया जा सकता है। प्राणायाम से स्मरण शक्ति बढ़ती है, कुशाग्रता आती है, सूझबूझ, दूरदर्शिता, सूक्ष्म निरीक्षण, धारणा, प्रज्ञा, मेधा आदि मानसिक विशेषताएं उन्नतशील होती हैं। मानव दीर्घजीवी बनकर जीवन का वास्तविक आनन्द प्राप्त किया करता है।
प्राणायाम करने से दीर्घश्वसन का अभ्यास भी स्वतः हो जाता है। ईश्वर प्रदत्त जीवन में प्राण श्वास गिनकर मिलते हैं। जिसके जैसे कर्म होते हैं उसी के अनुसार उसका अगला जन्म होता है। पुण्य-अपुण्य, कर्म के अनुसार ही व्यक्ति विभिन्न योनियों में जन्म, आयु और भोग प्राप्त होता है।
प्राणायाम करने वाला अपने श्वासों का कम प्रयोग करता है, इसीलिए वह दीर्घायु भी होता है। जो प्राणी जितने कम श्वास लेता है उतना ही दीर्घजीवी होता है।
कबूतर 34, चिड़िया 30, बत्तख 22, बन्दर 30, कुत्ता 28, सूअर 36, घोड़ा 26, बकरी व बिल्ली 24, सर्प 19, हाथी 22, मनुष्य 15 एवं कछुआ 5 श्वास एक मिनट में लेता है। जो प्राणी जिस गति से श्वास लेता है उसकी आयु भी उसी प्रकार से होती है। कछुए 400वर्ष तक की आयु के भी पाए जाते हैं। योगाभ्यास से श्वास संख्या 8 एवं नियमित प्राणायाम से श्वास संख्या 4 तक हो सकती है।
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