न पर्वतासो यदहं मनस्ये। -ऋग्वेद 10.27.5
मैं जो कुछ मन से सोच लेता हूँ उसे पर्वत भी नहीं रोक सकते हैं।
मैं जो कुछ भी निश्चय कर लेता हूँ उसको पहाड़ या पर्वत भी नहीं टाल सकता है। दृढ़निश्चयी सदैव उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना सर्वस्व लगा देता है। सफलता के लिए दृढ़ निश्चय अपेक्षित है। मनुष्य को अपने निश्चय की दृढ़ता के अनुरूप ही सफलता मिलती है। सफलता सदैव दृढ़ निश्चय पर निर्भर होती है, न कि साधन सामग्री पर। दृढ़ निश्चय से आत्मबल और आत्मशक्ति प्राप्त होती है जो सर्वकार्यों में सफलता दिलाती है।
मानुष ने जब दृढ़निश्चय का करा साथ। सफलता के मोती लगे उसके हाथ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी देकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करें।