1. लकीर के फकीर बनने से सार्थकता का अनुभव नहीं होता है।-ज्ञानेश्वर
2. जीवन निछावर जिसने दूजों के हित के लिए किया उसने ही सार्थकता को जाना।-ज्ञानेश्वर
3. अपने लिए तो सभी जीते हैं दूजों के विकास के लिए जो जीता है उसका जीवन सार्थक है।-ज्ञानेश्वर
4. सब अपने लिए सोचें तो संसार में कुछ सार्थक हो ही न।-ज्ञानेश्वर
5. जीवन को जो गवांता नहीं है, अपितु उसका सदुपयोग करता है और सुकर्म करता है वह अमर हो जाता है।-ज्ञानेश्वर
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