यह जान लें कि शुक्र तेजस्वी ग्रह है प्रातः इसका दर्शन पूर्व में भोर का तारा के रूप में होता है। सूर्य मंडल में इसकी स्थिति पृथ्वी व सूर्य की कक्षा के मध्य है। शुक्र स्त्री ग्रह है और लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। शास्त्रों में लक्ष्मी की उत्पत्ति की तीन कथाएं लोकप्रचलित हैं-1. समुद्र मंथन, 2. ज्वाला से उत्पत्ति एवं 3. भृगु कन्या के रूप में श्रीमाल पुराण में वर्णित है। ये कथाएं प्रतीकात्मक होती हैं।
दैत्यों के गुरु शुक्र का वर्ण श्वेत है। उनके सिर पर सुंदर मुकुट तथा गले में माला हैं वे श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में क्रमशः दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र तथा वरमुद्रा सुशोभित रहती है। शुक्राचार्य की दो पत्नियां हैं। एक का नाम गो है जो पितरों की कन्या है, दूसरी पत्नी का नाम जयन्ती है, जो देवराज इन्द्र की पुत्री है। गो से इनको चार पुत्र हुए-त्वष्टा, वरूत्री, शंड और अमर्क। जयन्ती से देवयानी का जन्म हुआ। शुक्राचार्य दानवों के पुरोहित हैं। इन्होंने भगवान् शिव की घोर तपस्या करके मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की थी। उसके बल से ये मरे हुए दानवों को जीवित करते थे। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्राचार्य ग्रह बनकर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे।
इनके अधिदेवता इंद्राणी तथा प्रत्यधिदेवता इन्द्र हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इनका वाहन रथ है, उसमें अग्नि के समान आठ घोड़े जुते रहते हैं। इनके रथ पर ध्वजाएं फहराती रहती हैं। इनका आयुध दंड है। शुक्र वृष एवं तुला राशि का स्वामी है। इसकी महादशा 20वर्ष की होती है।
रत्न हीरा है। शुक्र की प्रिय वस्तुएं चित्रांबर, श्वेत अश्व, श्वेत धनु, हीरा, रौप्य, सुवर्ण, तंडुल, चम्पा, घृत, पूर्व दिशा, पंचकोण, नौ अंगुल मंडल, गोत्र भार्गव, श्वेत रंग, जपसंख्या 16000, स्निग्ध भोजन आदि हैं।
इसका वैदिक मन्त्र इस प्रकार है-ऊँ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इंद्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
पौराणिक मन्त्र इस प्रकार है-हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्राप्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥
इसका बीज मन्त्र इस प्रकार है-ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राये नमः।
इनमें से किसी एक मन्त्र का जाप सूर्योदयकाल में करना चाहिए।
इसका ज्योतिष फल के रूप में कुछ योग यहां दे रहे हैं जोकि अचूक हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. कन्या लग्न में नीच का शुक्र उत्तम वैभव देता है।
2. चौथे भाव में किसी भी राशि का शुक्र हो तो आयु सुख संग व्यतीत हो जाती है।
3. शुक प्रधान व्यक्ति सुखी रहता है और शुक्र की दशा में वैभव पाता है।
4. धन भाव में शुक्र धनी बनाता है।
5. शनि-शुक्र की युति एक दूसरे की पूरक है।
6. शनि-शुक्र की युति जिस भाव में हो,उस भाव के फल को बढ़ाती है परन्तु सातवें भाव में व्यक्ति का चरित्र गिरा देती है।
7. चौथे भाव में शनि-शुक्र की युति अनेक स्त्री से धनलाभ कराती है। दशम भाव में यह युति हो तो जातक को राजा सदृश वैभव देती है।
8. मकर व कुंभ लग्न में शुक्र-शनि की युति अधिक लाभदायी होती है।
9. तुला व वृष लग्न में अकेला शनि ही योगकारक होता है।
10. मंगल व शुक्र एक दूसरे से सातवें हों तो जातक को कामुक बनाते हैं।
11. शुक्र से त्रिक भाव में शनि व मंगल हो तो दाम्पत्य जीवन कष्टप्रद रहता है। यदि शुभ दृष्ट हो तो कुछ अन्तर आ जाता है।
12. लग्न में शनि-शुक्र की युति वैवाहिक सुख अच्छा नहीं देती है।
13. स्त्री की कुंडली में आठवें शुक्र गर्भपात कराता है। शुक्र और मंगल में परस्पर राशि परिवर्तन हो तो स्त्री कुलटा होती है।
14. सातवें भाव में शुक्र-मंगल-चन्द्र की युति हो तो स्त्री पति आज्ञा से व्यभिचारिणी होती है।
15. शुक्र लग्न में हो तो विवाह विलम्ब से होता है परन्तु पति सुंदर व प्रेम करने वाला मिलता है।
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