क्रोध व्यक्ति के स्वभाव का प्राकृतिक भाव है। क्रोध को शारीरिक शक्ति एवं अहंकार का सूचक भी माना गया है। भय उत्पन्न करने में भी क्रोध की निज भूमिका रही है। ऐसा व्यक्ति मिलेगा ही नहीं जिसे क्रोध न आता हो? क्रोध आवेशों ओर आवेगों का निमित्त बनता है। अपराधों का मूलाधार इसे माना गया है। क्रोध शक्तिशाली होते हुए भी अवांछनीय है। सभी धर्म क्रोध को शान्त करने के लिए एकमत हैं। प्रत्येक व्यक्ति क्रोध को दबाना चाहता है। शरीर प्राण और ऊर्जा से चलता है। हम पार्थिव जीव हैं इसलिए हमारा मूल शक्ति स्रोत पृथ्वी है और गुरुत्वाकर्षण द्वारा पृथ्वी केन्द्र से आबद्ध होते हैं। क्रोध एक अभिव्यक्ति है। इसकी नकारात्मक भूमिका होने के कारण इसको उत्तम नहीं कहा जाता है। भाव परिवर्तन सहित आप क्रोध के आवेग की दिशा बदल सकते हैं। उपयोग सकारात्मक हो तो विकास होता है। क्रोध सामाजिक बुराई है। इसको दबाने से इसकी अधोगति हो जाती है और शरीर में कम्पन हो उठता है। अधोगामी होने से मूलाधार की शक्ति क्षीण हो उठती है और जोड़ों का दर्द होने लगता है। मूलाधार की शक्ति को उर्ध्वगामी करेंगे तो दर्द में आराम होगा। यह जान लें कि क्रोध से रोग, रोग से भय और भय से नए रोग उत्पन्न होते हैं। शान्त रहने से व शान्त वातावरण में बैठने से भय तथा क्रोध उत्पन्न करने वाले निमित्त दूर होते हैं और आरोग्य लाभ होता है। मूलतः क्रोध से उत्पन्न ऊर्जा को सकारात्मक भाव से कहीं अन्यत्रा उपयोग में लाएं। शान्त रहें, वरना क्रोध का दुष्परिणाम होगा।(मेरे द्वारा सम्पादित ज्योतिष निकेतन सन्देश अंक ६२ से साभार। सदस्य बनने या नमूना प्रति प्राप्त करने के लिए अपना पता मेरे ईमेल पर भेजें ताजा अंक प्रेषित कर दिया जाएगा।)
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