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शनिवार, मई 22, 2010

दान की महिमा सर्वविदित है!-व्रतानन्द शास्त्री



     आप दानी हैं या नहीं। नहीं हैं तो दान अवश्य करें। दान से लाभ होता है और सामर्थ्य भी बढ़ती है। जो प्राप्त करने का साहस रखता है वही दान कर सकता है। धन के पीछे दौड़ने वाला तुच्छ समझा जाता है। यह जान लें कि भगवान को उदारता प्रिय है इसलिए उदार होना चाहिए। ईश्वर कृपण लोग अच्छे नहीं लगते हैं। जब देकर कुछ पाने की लालसा रहती है तो वो दान नहीं कहलाता है। दान सुपात्र को देना चाहिए। किसी को भी दान देना ठीक नहीं है। सुपात्रा को दान देने से धनलाभ होता है और धन से ही वह पुण्य करता है।  पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग मिलता है।  
     यह जान लें कि कुपात्र को दान देने से दरिद्रता आती है। दरिद्रता पापी बनाती है। तब पाप प्रभाव के कारण दुःख या नरक भोगना पड़ता है। 
    दान करते समय दान देने वाले का दीन मत बनाओ और स्वयं को दानी कहलाकर अहंकार न करो। शास्त्र वचन यही है कि खूब कमाओ ओर खूब दान करो। वेदों में कहा है कि यदि तुम एक हाथ से दोगे तो हजार हाथों से वापिस मिलेगा।
     गीता कहती है कि जो ईश्वर शक्ति से प्राप्त कमाई में से दान नहीं करता है तो वह चोर है। शास्त्रों में विद्वानों ने यह तक बताया है कि किसको कितना भाग निकालना चाहिए। इसका प्रमाण निश्चित किया है। वेतन का आठवां भाग, व्यापारिक लाभ का चौथा भाग, किसानों की आय का बीसवां भाग ईश्वर का है। धन के संग्रह को शास्त्राकारों ने मना नहीं किया है। वर्ष के पूर्ण व्यय का दस गुना धन संग्रह किया जा सकता है। इससे अधिक या अतिरिक्त धन दान या प्रभु कार्यों में लगाना चाहिए। जो करता है वो  सुखी रहता है।

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