इस लेख में तिलक व्रत की चर्चा करेंगे इसके करने से समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यहां तक भूत-प्रेत व पिशाचादि ऊपरी प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। आईए इसके विषय में जानें।
तिलक व्रत
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को यह व्रत प्रारम्भ किया जाता है। इसमें नदी या तलाब के तट पर जाकर या घर पर ही मिट्टी से संवत्सर की मूर्ति बनाकर उसका पूजन करके बोलना चाहिए-
संबत्सराय नमः, चैत्राय नमः, वसन्ताय नमः।
तदोपरान्त विद्वान ब्राह्मण का अर्चन करना चाहिए तथा उस समय यह मन्त्र पढ़ना चाहिए-
संवत्सरोऽसि परिवत्सरोऽसीडावत्सरोऽसि अनुवत्सरोऽसि वत्सरोऽसि। तब भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्षं क्षेममिहास्तु मे। संवत्सरोपसर्गो में विलयं यात्वशेषतः।
प्रार्थना के बाद दक्षिणा देनी चाहिए।
इस व्रत को प्रत्येक शुक्ल प्रतिपदा को वर्षभर करना चाहिए।
इस तिलक व्रत को करने से जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यहां तक समस्त ऊपरी प्रभाव एवं भूतप्रेतादि व पिशाचादि की बाधाएं तक शान्त हो जाती हैं।
इसे आप भी करें और मिलने जुलने वालों को भी प्रेरित कर लाभ पहुंचाएं।
यदि कोई ऊपरी प्रभाव से प्रभावित है तो उसे भी बताएं।
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