यह जान लें कि प्राणायाम से बल पुरुषार्थ बढ़कर बुद्धि तीव्र व सूक्ष्म हो जाती है। शरीर में वीर्य वृद्धि हो कर स्थिर बल, पराक्रम और जितेंद्र्रियता होती है। चित्त निर्मल होकर उपासना में स्थिर होता है। कुल मिलाकर प्राणायाम सुव्यवस्थित ढंग से करें तो यह स्वास्थ्यवर्धक है। यह एक प्रकार की अलौकिक क्रिया है। प्राणायाम एक उपचयात्मक प्रक्रिया है जिससे हमारा रक्त परिसंचरण संतुलित व सुचारू होता है। प्राणायाम में श्वास प्रक्रिया सुचारू रूप से हो जाती है।
प्राणायाम से उदरगत अवयवों व आवश्यक रक्त नलिकाओं में कम्पन उत्पन्न होती है व उससे आपका उदर संबंधी परेशानी दूर होती है। कपाल भाति प्राणायाम या भस्त्रिका प्राणायाम से न केवल धमनीगत अवरोध दूर होते हैं अपितु इससे उनके पुनः उत्पन्न होने की संभावना भी समाप्त हो जाती है। यदि इसे नियमित प्राणायाम किया जाए तो संवेगात्मक तन्त्र को लाभ होता है।
प्राणायाम द्वारा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का कार्य सन्तुलित व सुचारू होता है।
प्राण व मन का घनिष्ठ संबंध है। प्राणायाम करने से मन स्वतः एकाग्र हो जाता है।
प्राणायाम करने से मन के ऊपर आया हुआ उसत, अविद्या व क्लेश रूपी तमस का आवरण क्षीण हो जाता है। शुद्ध हुए मन में धारणा स्वतः होने लगती है और फिर योग की उन्नत स्थितियों ध्यान व समाधि की ओर बढ़ा जाता है।
शरीर में श्वास गति, हृदय गति तथा वायुतन्त्र की गति का एक मजबूत संबध है। श्वास गति कम होने पर इनका पारस्परिक बंधन और मजबूत होता है। ऐसे में आत्मिक संबंध मजबूत होने से मानसिक शान्ति मिलती है। उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
प्राणायाम से अध्यात्मिक उन्नति व शारीरिक निरोग के लिए सबसे सरल व सस्ता साधन है। इसके प्रयोग से कोई भी अपना स्वास्थ्य ठीक रख सकता है।
स्थूलतः प्राणायाम श्वास-प्रश्वास के व्यायाम की एक पद्धति है, जिससे फेफड़े बलिष्ट होते हैं। रक्त संचार की व्यवस्था सुधरने से समग्र आरोग्य प्राप्त होता है और दीर्घायु लाभ होता है। फेफड़े ठीक कार्य करते हैं तो प्रत्येक कोशिका में जीवनीय ऊर्जा की उत्पत्ति ऑक्सीजन के द्वारा होती रहती है। यदि भरपूर ऑक्सीजन न मिल तो कोशिकाओं में वैषम्य और व्याधि होती है।
अधिकांश लोग गहरी श्वास लेने के अभ्यस्त नहीं होते जिससे फेफड़ों का लगभग एक चौथाई भाग ही कार्य करता है और शेष तीन चौथाई भाग निष्क्रिय पड़ा रहता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते सदृश सात करोड़ तीस लाख स्पंज जैसे कोष्ठक होते हैं। सामान्य श्वास लेने पर लगभग दो करोड़ छिद्रों में ही प्राणवायु का संचार होता है और शेष कोष्ठकों तक प्राणवायु नहीं पहुंच पाती है। इसी कारण उनमें जड़ता रूप विजातीय द्रव्य जमने लगता है और शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता भी कम हो जाती है और टीबी जैसा भंयकर रोग भी हो जाता है।
जब फेफड़े अधूरे होंगे तो शरीर की रक्त शुद्धि पर अत्यन्त कुप्रभाव पड़ेगा जिसके फलस्वरूप अकाल मृत्यु भी उपस्थित रह सकती है। इससे स्पष्ट है कि प्राणायाम की महत्ता सर्वपरि है। विभिन्न रोगों का निवारण प्राण वायु नियमन प्राणायाम द्वारा करने से हो सकता है।
मानव प्राण वायु के नियन्त्राण द्वारा सुखी एवं आनन्द पूर्ण जीवन जी सकता है। जीवन में एक व्यवस्था भी आ जाती है। मानव दीर्घजीवी बनकर जीवन का वास्तविक आनन्द प्राप्त किया करता है। प्राणायाम करने से दीर्घश्वसन का अभ्यास भी स्वतः हो जाता है। प्राणायाम करने वाला अपने श्वासों का कम प्रयोग करता है, इसीलिए वह दीर्घायु भी होता है। जो प्राणी जितने कम श्वास लेता है उतना ही दीर्घजीवी होता है।
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