इस लेख में वर चतुर्थी एवं विष्णु सप्तमी व्रत की चर्चा करेंगे।
वर चतुर्थी व्रत
स्कन्द पुराणानुसार यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी से प्रारम्भ होकर चार वर्ष में पूर्ण होता है।
इसमें प्रथम वर्ष में दिनार्ध में एक बार बिना नमक का भोजन, दूसरे वर्ष में रात्रि भोजन, तीसरे में अयाचित भोजन और चौथे वर्ष में उपवास रखकर समाप्ति के उपरान्त भोजन करें।
यह व्रत अर्थसिद्धि देने वाला है।
व्रत में भोजन 32 या 29 ग्रास का करना चाहिए।
यहां एक ग्रास आंवले के बराबर माना गया है।
न्यून भोजन करने वालों को 3ग्रास का भोजन करना चाहिए।
विष्णु सप्तमी व्रत
विष्णु सप्तमी मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को करना चाहिए।
लाल रंग के चन्दन और पुष्पों से भगवान् विष्णु का पूजन करना चाहिए।
बाद में बाटी का नैवेद्य अर्पण कर व्रत करना चाहिए।
इसके तीन वर्ष तक तीन व्रत रखने से अभीष्ट की सिद्धि प्राप्त होती है।
वर चतुर्थी व्रत आर्थिक तंगी को दूर करता है जबकि विष्णु सप्तमी भी अभीष्ट सिद्धि व सम्पन्नता लाता है।
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