धन अर्जन के लाखों साधन हैं। कोई विद्या से धन अर्जित करता है, कोई परिश्रम से धन कमाता है, कोई जुआ, सट्टा या लाटरी से धन अर्जित करता है, कोई चोरी, डकैती, ठगी या राहजनी से धन कमाता है, धन कमाने का कोई न कोई साधन व्यक्ति अपनाता है। कलयुग में तो धन के बिना व्यक्ति को मान-सम्मान व यश भी नहीं मिल पाता है। इस भौतिक युग में हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में शामिल है।
धन किससे और कैसे मिलेगा?
जातक जन्म से धनी है या कर्म से या उसे मातुल कुल से धन मिलेगा या पितृकुल से या लाटरी या सट्टे, शेयर मार्केट या अवैध धन्धों या अनैतिक हथकन्डों या गढ़ा धन मिलेगा। जातक को निजी व्यापार से धनलाभ होगा या शासन से दण्ड स्वरूप धनहानि झेलनी पड़ेगी या किसी सरकारी सेवा से धनलाभ होगा या दूजों के परिश्रम से धनलाभ होगा। इन सभी बातों का ज्ञान ज्योतिष द्वारा कुण्डली के विश्लेषण से ज्ञात होता है।
कुण्डली के दूसरे भाव से धन की मात्रा का एवं ग्यारहवें भाव से धनलाभ की रीति का विचार किया जाता है।
चन्द्रमा नकदी का स्वामी है और शनि कोषाध्यक्ष है।
१. चन्द्र एवं शनि की युति हो तो जातक अवैध रीति से धन एकत्र करता है।
२. चन्द्र-गुरु की युति धनकोश है जो धन जोड़ती है।
३. चन्द्र-शनि-गुरु कुण्डली में स्वगृही, मित्रक्षेत्री या उच्च का हो तो जातक को अत्यधिक धनलाभ होता है एवं उसका सम्मान बढ़ता है।
४. प्रायः देखा गया है कि सूर्य-गुरु मित्रक्षेत्री या उच्च के होकर अकेले या एक साथ बैठे हों तो जातक का धन दिनप्रतिदिन बढ़ता जाता है। यदि सूर्य-बुध मित्रक्षेत्री, स्वक्षेत्री या उच्च के होकर अकेले या एक साथ बैठे हों तो जातक का धन दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है। इसी प्रकार बुध-शनि स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री या उच्च का होकर अकेले या एक साथ बैठे हों तो जातक का धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है।
५. सूर्य-गुरु की युति कुण्डली में हो तो जातक को धनवान लोगों से धनलाभ होता है। शनि-गुरु की युति हो तो जातक को अधिकतर मजदूर वर्ग से धनलाभ होता है।
६. सूर्य-बुध की युति हो तो जातक को सरकार से धनलाभ होगा। यदि एकादश में पुरुष ग्रह या शुभग्रह स्थित हो तो जातक को प्रत्येक प्रकार से धनलाभ होता है।
७. जातक की जन्मकुण्डली में दूसरे भाव में जो भी ग्रह बैठा हो जातक को उसी ग्रह से सम्बन्धित सम्बन्धी से धनलाभ होगा। ग्रहों से सम्बन्धी इस प्रकार समझें-
सूर्य-स्वयं।
चन्द्र-माता, बुआ, मौसी, चाची, सास, चाची, बुआ।
मंगल शुभ हो तो-बड़ा भाई। मंगल अशुभ हो तो साला, मौसेरा भाई, बुआ का पुत्रा।
बुध-बहिन, मौसी, साली, लड़की, भाभी, भतीजी, बुआ।
गुरु-पिता, दादा, कुलपुरोहित, साधु, महात्मा, ऋषि।
शुक्र-स्त्री, प्रेमिका या पत्नी।
शनि-चाचा, ताऊ।
राहु-ससुराल, ननिहाल।
केतु-पुत्र, भांजा, दोहता, पोता।
८. लग्न में सूर्य हो तो जातक निज पुरुषार्थ से धन अर्जित करता है या सूर्य संबंधी वस्तुओं से धन पाता है।
९. चतुर्थ भाव में गुरु हो तो गुरु की वस्तुओं एवं गुरु संबंधियों से लाभ होता है।
१०. सप्तम भाव में शनि बैठा हो तो शनि की वस्तुओं और चाचा या ताऊ से धनलाभ होता है।
११. दशम भाव में मंगल हो तो जातक को मंगल की वस्तुओं या भाई, साला, मौसेरे या चचेरे भाई से धनलाभ होता है। मंगल-शनि की युति किसी भी भाव में हो तो जातक चिकित्सा या अपराधी प्रवृत्ति से धन अर्जित करता है।
१२. सप्तम भाव में अकेला चन्द्र हो तो जातक धनी होता है।
१३. तृतीय भाव के ग्रहों से सगे-संबंधियों या साझेदारी से लाभ होता है। पंचम भाव के ग्रहों से सन्तान, भांजा या भतीजे से लाभ होता है।
१४. एकादश भाव के ग्रहों से बुजुर्गों द्वारा निज श्रम से धनलाभ करता है। द्वितीय भाव के ग्रहों से ससुराल या मंदिर से धनलाभ करता है।
१५. छठे भाव के ग्रहों से ननिहाल, पुत्रियों के रिश्तेदारों से धनलाभ करता है। छठे भाव में केतु के मित्रा ग्रह सूर्य-शुक्र-राहु बैठे हों तो साहूकारी से धन प्राप्त होता है।
कुण्डली का विश्लेषण करके आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि आपको किस संबंधी से धनलाभ होगा। यह विचार उक्त प्रकार से कर सकते हैं। इसके लिए पारखी दृष्टि चाहिए जोकि ग्रहों का विश्लेषण कर सके।(मेरे द्वारा सम्पादित ज्योतिष निकेतन सन्देश अंक ६२ से साभार। सदस्य बनने या नमूना प्रति प्राप्त करने के लिए अपना पता मेरे ईमेल पर भेजें ताजा अंक प्रेषित कर दिया जाएगा।)
Dhan kaise milega ye jaankari achhi hai.......
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