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बुधवार, मई 26, 2010

जीवन रेखा और रोग - बाबा ज्ञानदेव तपस्वी



          हाथ में आप जीवन रेखा के विषय में जानते ही होंगे। यह रेखा मंगल पर्वत से प्रारम्भ होकर शुक्र या चन्द्र या किसी भी पर्वत पर समाप्त हो जाती है। जीवन रेखा से रोग संबंधी विचार कर सकते हैं। जीवन रेखा पर विचार करने के बाद इससे रोग का विचार कर सकते हैं। क्या जीवन रेखा यह बताती है कि हम बीमार पड़ेंगे। आप जीवन रेखा को देखें वह आपको रोग का संकेत देगी।
जीवन रेखा और रोग संबंधी विचार
          जीवन रेखा से रोग संबंधी विचार करने के लिए निम्न तथ्यों पर विचार करके निर्णय करें कि जीवन रेखा रोग संबंधी संकेत देती है या नहीं। कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-
1. जीवन रेखा से नीचे की ओर गिरती शाखाएं, स्टार चिह्‌न हो तो जातक को रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धी बीमारी होती है।
2. जीवन रेखा से शनि पर्वत पर उपस्थित जाली या क्रास चिह्‌न  होने से पित्त सम्बन्धी बीमारी होती है।
3. जीवन रेखा को काटकर स्वास्थ्य रेखा से मिलती हुई लहरदार रेखा पित्त विकार या ज्वर उत्पन्न करती है।
4. जीवन रेखा पर वृत्त अथवा धब्बा होने से नेत्र रोग की बीमारी होती है।
5. जीवन रेखा पर अन्य रेखा जाल बनाए और मंगल पर्वत पर रेखा जाए तो जातक को रक्त विकार एवं खांसी उत्पन्न होती है।
6. जीवन रेखा के साथ-साथ जाती हुई मस्तिष्क रेखा मस्तिष्क ज्वर उत्पन्न करती है।
7. जीवन रेखा पर सफेद बिन्दु होने से मोतियाबिन्द या नेत्र संबंधी कोई रोग होता है।
8. जीवन रेखा को यदि स्वास्थ्य रेखा काटती है तो पाचन सम्बन्धी बीमारी होती है।
9. जीवन रेखा को काटकर सूर्य पर्वत तक जाती रेखा सूर्य पर्वत पर रेखा का समूह अथवा गुणा का चिह्‌न  होने से हृदय सम्बन्धी रोग होता है।
10. जीवन रेखा पर द्वीप तथा आड़ी रेखाओं हों तो यह स्थिति मानसिक अशान्ति, तनाव या रोग का संकेत देती है।
11. जीवन रेखा पर उपस्थित द्वीप को काटती एक रेखा आंख की शल्य चिकित्सा का संकेत देती है।
12. यदि कोई रेखा मंगल पर्वत से ऊपर उठती हुई नीचे आकर जीवन रेखा को काटती है या स्पर्श करती है तो ऐसी रेखा वाली जिसके हाथ में हो उसका किसी अन्य के साथ अनुचित सम्बन्ध रहा था, जो उसके लिए संकट का कारण बना था।
13. यदि जीवन रेखा के भीतर की ओर छोटी रेखा समान्तर में साथ चलती है, तो जातक के जीवन में आने वाले परलिंगी नम्र प्रकृति का होगा।
14. जीवन रेखा अगर अंगूठे की जड़ से प्रारम्भ होगी तो उस व्यक्ति को संतान की प्राप्ति नहीं होगी। 
15. जीवन रेखा का प्रारम्भ जंजीरनुमा होने से जातक मानसिक रूप से अस्थिर होता है, बुद्धि को स्थिर नहीं रख पाता, हर कार्यमें उतावलापन होता है, इस कारण अधिकांशतः असफलता का मुंह देखना पड़ता है। मनःस्थिति भी संकुचित हो जाती है।
16. जीवन रेखा अन्त में दो भागों में बंट जाए तो जातक की मृत्यु जन्म स्थान से बाहर होती है।
          
       इन योगों को आप किसी भी हाथ में देखकर विचार करके यह ज्ञात कर सकते हैं कि जीवन रेखा से रोग होगा या नहीं। यदि जीवन रेखा से रोग के संकेत मिलते हैं और गुरु पर्वत और अन्य योग श्रेष्ठ हैं। अशुभ चिह्‌न कम हैं तो रोग के ठीक होने की संभावना मिलती है।

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