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शुक्रवार, जनवरी 08, 2010

कर्म



धियो यो नः प्रचोदयात।-यजुर्वेद 3.35

वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्कर्मों में प्रेरित करे।

कहते हैं कि जैसे कर्म होगा वैसा फल होगा। हम किसी को चांटा मारकर उससे आदर या प्रेम की आशा करें तो वह संभव नहीं होगा। हम जिससे जो चाहते हैं वह उसे देने पर ही प्रत्युत्तर में मिलेगा। समय का सदुपयोग सत्कर्मों में संलग्न रहने में है। अतः प्रयास यही रहना चाहिए कि सदैव सत्कर्मों में लिप्त रहें।

सुकर्म सदा देते हैं सुफल। कुकर्म देते हैं सदा कुफल॥
(मेरे द्वारा सम्पादित ज्योतिष निकेतन सन्देश अंक 64 से साभार। सदस्य बनने या नमूना प्रति प्राप्त करने के लिए अपना पता मेरे ईमेल पर भेजें ताजा अंक प्रेषित कर दिया जाएगा।)


1 टिप्पणी:

  1. कर्म के बिना भाग्य भी फलीभूत नहीं होता है. कर्म हमारे जीवन में प्रधान है. सत्य कथन...

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