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रविवार, नवंबर 01, 2009

आत्मबल

आत्मबल
-ज्ञानेश्वर
कुछ व्यक्ति सांसारिक झंझटों से भागकर जंगल में वटवृक्ष के नीचे वार्तालाप कर रहे थे। एक ने कहा-'हम सब मिलकर जंगल में रहेंगे और तपस्या करेंगे, लेकिन मेरी मानो इस पर विचार अवश्य कर लो कि जब ईश्वर ने खुश होकर वरदान देने को कहा तो हम सब मांगेंगे क्या?'
दूसरा बोला-'अन्न मांगेंगे क्यों कि इसके बिना जीवित रहना संभव नहीं है?'
तीसरा बोला-'बल मांगेंगे, क्योंकि इसके बिना कोई कार्य नहीं होता है?'
चौथा बोला-'बुद्धि मांगना अधिक अच्छा है क्योंकि कोई भी कार्य करो तो बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है?' पांचवा बोला-'ये सारी वस्तुएं तो सांसारिक हैं। आत्म शांति मांगेंगे जोकि जीवन का परम लक्ष्य है?' तब पहले ने कहा-'तुम सब मूर्ख हो, क्यों न हम स्वर्ग ही मांग लें क्योंकि वहां तो सबकुछ होता है?' उनकी बातें सुनकर विशाल वटवृक्ष ठहाका लगाते हुए बोला-'तुम लोगों से तप न होगा। मनोबल होता तो संसार से क्यों भागते जाओं जाकर पहले आत्मबल बढ़ाओ। फिर आगे की सोचना। बिना आत्मबल के कुछ प्राप्त नहीं होता है। आत्मबल है तो कुछ करने की सामर्थ्य आती है, वरना सब निरर्थक है।'

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