यह जान लें कि जीवन के चार मुख्य ध्येय हैं-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष। सैक्स या काम तृतीय ध्येय या पुरुषार्थ का तृतीय लक्ष्य है। जीवन के लिए जिस प्रकार धन आवश्यक है उसी प्रकार सृष्टि के विकास के लिए काम भी आवश्यक है। काम के दो मुख्य लक्ष्य हैं-आनन्द और दूसरा वंश वृद्धि।
जन्म कुण्डली के सप्तम भाव, सप्तमेश तथा शुक्र के माध्यम से विवाह सुख देखा जाता है। सन्तान का द्योतक भाव पंचम, पंचमेश स्त्री ग्रह चन्द्र एवं शुक्र तथा पुरुष ग्रह सूर्य, गुरु व मंगल हैं। चन्द्रमा एवं मंगल ग्रह स्त्री के मासिक स्राव और अंड निर्माण के कारक ग्रह माने गए हैं। उसी प्रकार गुरु एवं चन्द्रमा पुरुष के वीर्य और शुक्राणुओं के निर्माण के कारक ग्रह माने जाते हैं।
गर्भाधान कब होता है?
यह सर्वविदित है कि स्त्री व पुरुष के समागम के फलस्वरूप अंड व शुक्राणुओं के संयोग से गर्भ धारण होता है। जब महिला के मासिक स्राव हो और जन्मकालीन चन्द्र से 3,6,10,11 वें भाव को छोड़कर किसी अन्य भाव में मंगल हो तथा पुरुष की कुण्डली में जन्मकालीन चन्द्रमा से गोचर का चन्द्र 3,6,10,11 में किसी एक भाव में हो और गुरु से चन्द्र दृष्ट हो तो गर्भ अवश्य धारण होता है।
पुत्र या पुत्री कब होती है?
मंगल से स्त्री के अण्डाणु और गुरु से पुरुष के शुक्राणु ऊर्जावान् होते हैं।
जब गुरु, मंगल एवं सूर्य का प्रभाव पंचम भाव पर पड़ता है तो पुत्र का जन्म होता है। चन्द्रमा एवं शुक्र का प्रभाव पंचम भाव पर पड़ता है तो कन्या सन्तान उत्पन्न होती है।
पंचम भाव या पंचमेश दुष्ट ग्रहों के प्रभाव में हो या उनके मध्य स्थित हो एवं शुभग्रहों की युति व दृष्टि न हो तो जातक के वीर्य में शुक्राणु नहीं पाए जाते हैं। ऐसा जातक नपुंसक भी हो सकता है। वह समागम कर सकता है पर सन्तान नहीं उत्पन्न कर सकता है।
यदि पंचम भाव को सूर्य, मंगल एवं गुरु देखते हों तथा पंचम भाव पर किसी दुष्ट ग्रह का प्रभाव न हो तो अधिकतर पुत्र ही उत्पन्न होते हैं।
यदि पंचमेश पुरुष ग्रह हो, पाप प्रभाव या दृष्टि न हो, युति न हो और जब चन्द्र या शुक्र पंचम भाव या पंचमेश को देखते हों तो जातक के कन्या सन्तान अधिक होती हैं।
यह विचार विभिन्न कुंडली में कर अभ्यस्त हो सकते हैं।
सन्तान संबंधी ज्योतिष योग
अब सन्तान संबंधी अनेक ज्योतिष योग की चर्चा करेंगे जिससे आप सन्तान संबंधी विश्लेषण कुंडली से करने में सामर्थ्य हो सकें। कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
1. लग्नेश पहले, दूसरे या तीसरे भाव में हो तो जातक के प्रथम सन्तान पुत्र होती है और यदि लग्नेश चतुर्थ भाव में हो तो दूसरी सन्तान पुत्र होती है।
2. यदि पंचम भाव शुभग्रहों से दृष्ट हो तो सन्तान योग अवश्य बनता है। लेकिन शुभग्रह या पंचमेश की दृष्टि न हो या पंचम भाव में शुभग्रह स्थित न हो तो सन्तान योग नहीं होता है।
3. सन्तानहीनता-सातवें भाव में शुक्र तथा दशम भाव में चन्द्र व चतुर्थ भाव में पापग्रह हो तो जातक सन्तान हीन होता है।
4. पंचमेश जहां स्थित हो वहां से पांचवे, छठे या बारहवें भाव में दुष्ट ग्रह स्थित हों तो जातक के सन्तान का अभाव रहता है। यदि सन्तान हो गई तो उसे जीवित रहने में सन्देह रहता है।
5. पांचवे मंगल हो तो जातक के सन्तान उत्पन्न होकर जीवित नहीं रहती है। यदि गुरु की दृष्टि हो तो एक सन्तान नष्ट होकर अन्य सन्तान जीवित रहती है।
6. लग्न व चन्द्र कुंडली में पंचमेश और गुरु शुभभाव में हों तथा शुभग्रह पांचवे हों या शुभग्रहों से पंचम भाव दृष्ट हो, लग्नेश और पंचमेश युत हो या परस्पर दृष्ट हो या स्थान परिवर्तन हो तो जातक सन्तान युक्त होता है।
7. लग्न, चन्द्र व गुरु से पंचम भाव पापग्रहों से युत हो या दृष्ट हो तथा शुभग्रह के प्रभाव से हीन हो तो या पापग्रहों के मध्य हो एवं पंचमेश पांचवे हो तो जातक सन्तान रहित होता है।
8. कुण्डली में पंचम भाव पर पापग्रह शनि, राहु या केतु या नीच ग्रह की दृष्टि या युति हो या पंचम भाव में पंचमेश नीच हो,
द्वादशेश, अष्टमेश, षष्ठेश से युत या दृष्ट हो तब ऐसे जातक के सन्तान नहीं होती है। मंगल की दृष्टि हो तो गर्भपात हो जाता है।
9. पंचमेश व पंचम भाव की गुरु की दृष्टि हो तो पंचम भाव एवं पंचमेश पाप प्रभाव में ने हो तब अधिकतर पुत्र होते हैं।
10. पंचमेश शत्रुक्षेत्रीय हो व गुरु मूलत्रिकोण में अष्टमेश एवं पापग्रहों के पाप या नीच प्रभाव में हो व पंचमेश पर सूर्य व गुरु की दृष्टि हो तब अधिकतर कन्या सन्तान होती हैं।
सन्तान न हो तो उपाय
सन्तान न हो तो पीपल के वृक्ष के परिक्रमा करके पीपल एवं केले के पेड़ को जल देकर पूजा करने व गुरु, माता-पिता की सेवा करने से पुत्र लाभ होता है। शिव उपासना, सन्तानगोपाल पाठ से भी लाभ होता है। कई बार सन्तान न हो तो विधि विधान से हरिवंश पुराण का पाठ करने से सन्तान की प्राप्ति होती है।
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें-निस्संतान योग-सत्यज्ञ
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