नए रूप रंग के साथ अपने प्रिय ब्‍लॉग पर आप सबका हार्दिक स्‍वागत है !

ताज़ा प्रविष्ठियां

संकल्प एवं स्वागत्

ज्योतिष निकेतन संदेश ब्लॉग जीवन को सार्थक बनाने हेतु आपके लिए समर्पित हैं। आप इसके पाठक हैं, इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे। हमें विश्‍वास है कि आप सब ज्योतिष, हस्तरेखा, अंक ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म सन्देश, योग, तंत्र, राशिफल, स्वास्थ चर्चा, भाषा ज्ञान, पूजा, व्रत-पर्व विवेचन, बोधकथा, मनन सूत्र, वेद गंगाजल, अनुभूत ज्ञान सूत्र, कार्टून और बहुत कुछ सार्थक ज्ञान को पाने के लिए इस ब्‍लॉग पर आते हैं। ज्ञान ही सच्चा मित्र है और कठिन परिस्थितियों में से बाहर निकाल लेने में समर्थ है। अत: निरन्‍तर ब्‍लॉग पर आईए और अपनी टिप्‍पणी दीजिए। आपकी टिप्‍पणी ही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है।

सोमवार, मार्च 27, 2017

चिन्‍ता मुक्‍त कैसे हों

चिन्‍ता चिता से बढ़कर है। चिंता चिता से बढ़कर इसलिए भी है क्‍योंकि चिन्तित व्‍यक्ति अपना मानसिक सन्‍तुलन खो बैठता है। ऐसे में वह सही निर्णय नहीं ले पाता है। चिन्‍ताएं व्‍यक्ति के जीवन में बाधाएं लाने के साथ-साथ उसे थकाकर समय से पहले ही बूढ़ा बना देती हैं। व्‍यक्ति कार्य करने से इतना नहीं थकता है जितना मानसिक स्थिति उसको थकाने के साथ-साथ दु:ख देती है। काम की अधिकता व्‍यक्ति को कदापि नहीं मारती है अपितु चिन्‍ता उसे नष्‍ट करके ही दम लेती है। चिंता व्‍यक्ति को धीरे-धीरे मारती है जबकि तलवार या बन्‍दूक की गोली तुरन्‍त मार देती है। चिन्‍ता व्‍यक्ति को दीमक की तरह अन्‍दर ही अन्‍दर खा जाती है और पता तब चलता है जब सब कुछ खतम हो जाता है। चिता तो मृतक के शव को जलाती है पर चिन्‍ता जीवित व्‍यक्ति को ही जला देती है। हम चिन्‍ता मुक्‍त तभी हो सकते हैं जब हमें इस बात का बोध हो जाए कि सुख-दु:ख मन की स्थितियां हैं। आप कुछ न पाकर भी सुख का अनुभव कर सकते हैं और कुछ पाकर भी दु:ख का अनुभव कर सकते हैं। मान लो कोई आपको दस लाख रुपए का लाभ कराने का आश्‍वासन देता है तो आप कल्‍पना के रथ पर सवार होकर सुख की अनुभूति कर बैठते हैं और बाद में वही व्‍यक्ति लाभ न करा पाने के लिए क्षमा मांग ले तो आपने कल्‍पना में जो सुख की अनुभूति की थी वह सबकुछ धूमिल हो जाता है और आप पुन: दु:ख के भंवर में घूमने लगते हैं। यहां आपको न कुछ मिला और न कुछ आपसे लिया गया, पर आपने सुख-दु:ख दोनों को अनुभूत कर लिया। जिस स्थिति में हमें सुख मिलता है उसी  स्थिति में दु:ख का भी अनुभव कर लिया। बस की भीड़ में खड़े-खड़े थकने पर जब सीट मिल जाती है तो आप सुख का अनुभव करते हैं। समस्‍या है तो उसका समाधान खोजिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्‍पणी देकर अपने विचारों को अभिव्‍यक्‍त करें।

पत्राचार पाठ्यक्रम

ज्योतिष का पत्राचार पाठ्यक्रम

भारतीय ज्योतिष के एक वर्षीय पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर ज्योतिष सीखिए। आवेदन-पत्र एवं विस्तृत विवरणिका के लिए रु.50/- का मनीऑर्डर अपने पूर्ण नाम व पते के साथ भेजकर मंगा सकते हैं। सम्पर्कः डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' ज्योतिष निकेतन 1065/2, शास्त्री नगर, मेरठ-250 005
मोबाईल-09719103988, 01212765639, 01214050465 E-mail-jyotishniketan@gmail.com

पुराने अंक

ज्योतिष निकेतन सन्देश
(गूढ़ विद्याओं का गूढ़ार्थ बताने वाला हिन्दी मासिक)
स्टॉक में रहने तक मासिक पत्रिका के 15 वर्ष के पुराने अंक 3600 पृष्ठ, सजिल्द, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण और संग्रहणीय हैं। 15 पुस्तकें पत्र लिखकर मंगा सकते हैं। आप रू.3900/-( डॉकखर्च सहित ) का ड्राफ्‌ट या मनीऑर्डर डॉ.उमेश पुरी के नाम से बनवाकर ज्‍योतिष निकेतन, 1065, सेक्‍टर 2, शास्‍त्री नगर, मेरठ-250005 के पते पर भेजें अथवा उपर्युक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट नं. 32227703588 डॉ. उमेश पुरी के नाम में जमा करा सकते हैं। पुस्तकें रजिस्टर्ड पार्सल से भेज दी जाएंगी। किसी अन्य जानकारी के लिए नीचे लिखे फोन नं. पर संपर्क करें।
ज्‍योतिष निकेतन, मेरठ
0121-2765639, 4050465 मोबाईल: 09719103988

विज्ञापन