आप क्या सभी धन की चाह में भागदौड़ करते हैं! धन के बिना आज कुछ भी क्रय नहीं होता है। कलयुग का भगवान् धन ही तो है। धन से सबकुछ मिल जाता है, पर मृत्यु को दूर नहीं भगाया जा सकता है। धन से जीवन नहीं मिलता है। सभी को धन की चाहत रहती है और चाहत को पूरा करने के लिए वे शुभाशुभ जैसे भी कर्म हो करते जाते हैं और उन्हें शरीर का भी ख्याल नहीं रहता है। धन हो तो ठीक पर न हो तो कुछ भी न ठीक। लेकिन यह भूल जाते हैं कि सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य है, यह ठीक तो सब कुछ ठीक। वरना सारे सुख व्यर्थ हैं यदि शरीर स्वस्थ न हो। यदि व्यक्ति के पास धन न हो तो उसे धनहीन या दरिद्र कहते हैं। कुण्डली में दरिद्र योग होता है। यदि यह हो तो आर्थिक तंगी रहती है और धनहीन होने के अवसर बार-बार होते हैं! यहां कुछ दरिद्र योगों की चर्चा करते हैं! कुछ दरिद्र योग यहां दे रहे हैं। यदि ये किसी भी कुण्डली में एक या एक से अधिक हैं तो जितने हैं उसी अनुपात में जातक दरिद्र होगा। दरिद्रता अभिशाप है। आप भी कुण्डली का विश्लेषण करके देखें कि कहीं ये दरिद्र योग आपकी कुण्डली में तो नहीं। यदि हैं तो कितने हैं?
1. लग्न या चन्द्र केतु से पीड़ित हो और लग्नेश आठवें भाव में मारक ग्रह से पीड़ित हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ होता है।
2. लग्नेश पाप ग्रह से युत होकर अशुभ भाव में हो और द्वितीयेश निर्बल हो या छठे भाव में स्थित हो तो जातक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के बाद भी दरिद्रता भोगता है।
3. लग्नेश अशुभ भाव के स्वामी के साथ युत हो और शनि भी साथ में स्थित हो व किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ती हो तो जातक निर्धन, कृपण एवं अस्वस्थ होता है।
4. पंचमेश छठे हो एवं नवमेश बारहवें होकर मारक ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
5. नवमेश व दशमेश के अलावा पापग्रह लग्न में होकर मारक ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
6. त्रिक भावों के स्वामी जहां बैठे हों उन भावों के स्वामी भी त्रिक भावों में बैठकर पापगहों से युत या दृष्ट हों तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
7. नवमांश लग्न का स्वामी चन्द्र मारक ग्रह से युत या दृष्ट हो या मारक भावों में स्थित हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
8. शुभ ग्रह पाप भावों में स्थित हों और पापग्रह शुभ भावों में स्थित हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
9. लग्नेश और इसका नवांश स्वामी या नवांश लग्न का स्वामी अशुभ भावों में हो और मारक ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
10. ग्रह त्रिक भाव के स्वामी से युत होकर द्वितीयेश व सप्तमेश से भी युत हो एवं पंचम व नवम भाव के प्रभाव से मुक्त हो तो यह योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ होता है।
11. मंगल व शनि की युति दूसरे भाव में हो और उस पर बुध की दृष्टि न पड़ती हो तो दरिद्र योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
12. सूर्य दूसरे भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि दूसरे भाव में सूर्य से दृष्ट हो तो दरिद्र योग होता है! इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
13. लग्न में चन्द्र केतु से पीड़ित हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
14. सूर्य चन्द्र की युति हो व एक दूसरे के नवांश में हों तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
15. एकादश भाव का स्वामी त्रिक भाव में हो तो जातक कुकर्मी, ऋणी, निर्धन एवं कर्ण रोग से पीड़ित होता है।
दरिद्रता के ज्योतिष योग
यहां दरिद्रता के ज्योतिष योगों की चर्चा कर रहे हैं! दरिद्रता के 15 ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-1. लग्न या चन्द्र केतु से पीड़ित हो और लग्नेश आठवें भाव में मारक ग्रह से पीड़ित हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ होता है।
2. लग्नेश पाप ग्रह से युत होकर अशुभ भाव में हो और द्वितीयेश निर्बल हो या छठे भाव में स्थित हो तो जातक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के बाद भी दरिद्रता भोगता है।
3. लग्नेश अशुभ भाव के स्वामी के साथ युत हो और शनि भी साथ में स्थित हो व किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ती हो तो जातक निर्धन, कृपण एवं अस्वस्थ होता है।
4. पंचमेश छठे हो एवं नवमेश बारहवें होकर मारक ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
5. नवमेश व दशमेश के अलावा पापग्रह लग्न में होकर मारक ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
6. त्रिक भावों के स्वामी जहां बैठे हों उन भावों के स्वामी भी त्रिक भावों में बैठकर पापगहों से युत या दृष्ट हों तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
7. नवमांश लग्न का स्वामी चन्द्र मारक ग्रह से युत या दृष्ट हो या मारक भावों में स्थित हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
8. शुभ ग्रह पाप भावों में स्थित हों और पापग्रह शुभ भावों में स्थित हो तो जातक निर्धन, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
9. लग्नेश और इसका नवांश स्वामी या नवांश लग्न का स्वामी अशुभ भावों में हो और मारक ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
10. ग्रह त्रिक भाव के स्वामी से युत होकर द्वितीयेश व सप्तमेश से भी युत हो एवं पंचम व नवम भाव के प्रभाव से मुक्त हो तो यह योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ होता है।
11. मंगल व शनि की युति दूसरे भाव में हो और उस पर बुध की दृष्टि न पड़ती हो तो दरिद्र योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
12. सूर्य दूसरे भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि दूसरे भाव में सूर्य से दृष्ट हो तो दरिद्र योग होता है! इस योग में उत्पन्न जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
13. लग्न में चन्द्र केतु से पीड़ित हो तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
14. सूर्य चन्द्र की युति हो व एक दूसरे के नवांश में हों तो जातक दरिद्र, कंजूस एवं अस्वस्थ रहता है।
15. एकादश भाव का स्वामी त्रिक भाव में हो तो जातक कुकर्मी, ऋणी, निर्धन एवं कर्ण रोग से पीड़ित होता है।
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