आधुनिक जीवनशैली की जटिलता के कारण डायबिटीज का रोग तेजी से बढ़ा है। इन रोगियों में इन्सुलिन हार्मोन इसके ऊतकों पर निष्प्रभावी होने के कारण ग्लूकोज कोशिकाओं के अन्दर प्रवेश नहीं कर पाने के कारण रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में शरीर की जैव रासायनिक प्रक्रियां असंतुलित हो जाती हैं। इस रोग के संबंध में अनेक भ्रांन्तियां हैं। इसके रोगी परहेज व नियन्त्राण न रख पाने के कारण दुष्परिणाप भुगतते हैं।
कुछ का कहना है मीठा अधिक खाने से होता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है। इतना जरूर है कि रोग हो जाए तो परहेज रखना पड़ता है और मीठे से बचना होता है। भोजन शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही लेना चाहिए और उतना लेना चाहिए जितनी कैलोरी चाहिए। वसा, घी, तेल, तले, गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए।
कई रोगी पेशाब में ग्लूकोज न आने पर सोचने लगते हैं कि वे रोग मुक्त हैं। ऐसा नहीं है। रोग का मापदण्ड रक्त ग्लूकोज स्तर होता है न कि पेशाब में ग्लूकोज। इसके रोगियों को नियमत रक्त ग्लूकोज मापते रहना चाहिए।
कुछ का कहना है कि इसके रोगियों को आराम अधिक करना चाहिए। ऐसा नहीं है अपितु इसके रोगियों को अधिक सक्रिय रहना चाहिए। एक सप्ताह में मध्यम गति से 40मिनट व्यायाम तो करना ही चाहिए। इससे अतिरिक्त वसा नहीं बढ़ती है। यदि व्यायाम करने से चक्कर, पसीना आना, घबराहट, कमजोरी महसूस हो तो तुरन्त सरल शर्करायुक्त भोजन का सेवन करन चाहिए।
कुछ का कहना है कि मीठा खाने के बाद कड़वा खा लें तो कोई दुष्परिणाम नहीं होता है। यह गलत है और मात्रा भ्रम है। इसका इस रोग से कोई संबंध नहीं है।
कुछ रोगी भोजन अधिक खा लेते हैं और परहेज भी नहीं रखते हैं बाद में दवाई अधिक खा लेते हैं। यह गलत है और इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
डायबिटीज के रोगियों को पूर्ण उपवास नहीं रखना चाहिए। यदि अधिक मीठा खाने का शौक है तो शुगर फ्री सैक्रीन का प्रयोग कर सकते हैं।
रोग होने पर जीवनशैली में परिवर्तन लाएं। सक्रिय रहें, नियमित व्यायाम करें। रक्त ग्लूकोज पर सख्ती से नियन्त्रण करें। नियमित दवा अवश्य लें। इस रोग से स्थायी मुक्ति की आशा न करें और किसी के बहकावे में कदापि न आएं।
इस रोग में आपको अपने फैमिली डॉक्टर से नियमित सलाह अवश्य लेते रहना चाहिए।
यह रोग किसी भी आयु में
कुछ का कहना है कि यह 40के बाद होता है। बच्चों व युवाओं में नहीं होता है। ऐसा नहीं है यह किसी को भी और कभी भी हो सकता है। यह रोग एक बार हो जाए तो जीवनपर्यन्त चलता है। जीवन शैली में परिवर्तन, परहेज व नियमित दवाईयों से इसे नियन्त्रिात किया जा सकता है। रोग गंभीर व जटिल होने पर ही इन्सुलिन इन्जेक्शन आवश्यक होते हैं।
अनेक भ्रान्तियां
यह आम भ्रान्ति है कि यह रोग मोटापे के कारण होता है। प्रत्येक मोटा व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त नहीं होता है। यह जरूर है कि मोटापे के कारण रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ का कहना है मीठा अधिक खाने से होता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है। इतना जरूर है कि रोग हो जाए तो परहेज रखना पड़ता है और मीठे से बचना होता है। भोजन शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही लेना चाहिए और उतना लेना चाहिए जितनी कैलोरी चाहिए। वसा, घी, तेल, तले, गरिष्ठ भोजन से बचना चाहिए।
कई रोगी पेशाब में ग्लूकोज न आने पर सोचने लगते हैं कि वे रोग मुक्त हैं। ऐसा नहीं है। रोग का मापदण्ड रक्त ग्लूकोज स्तर होता है न कि पेशाब में ग्लूकोज। इसके रोगियों को नियमत रक्त ग्लूकोज मापते रहना चाहिए।
कुछ का कहना है कि इसके रोगियों को आराम अधिक करना चाहिए। ऐसा नहीं है अपितु इसके रोगियों को अधिक सक्रिय रहना चाहिए। एक सप्ताह में मध्यम गति से 40मिनट व्यायाम तो करना ही चाहिए। इससे अतिरिक्त वसा नहीं बढ़ती है। यदि व्यायाम करने से चक्कर, पसीना आना, घबराहट, कमजोरी महसूस हो तो तुरन्त सरल शर्करायुक्त भोजन का सेवन करन चाहिए।
कुछ का कहना है कि मीठा खाने के बाद कड़वा खा लें तो कोई दुष्परिणाम नहीं होता है। यह गलत है और मात्रा भ्रम है। इसका इस रोग से कोई संबंध नहीं है।
कुछ रोगी भोजन अधिक खा लेते हैं और परहेज भी नहीं रखते हैं बाद में दवाई अधिक खा लेते हैं। यह गलत है और इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
डायबिटीज के रोगियों को पूर्ण उपवास नहीं रखना चाहिए। यदि अधिक मीठा खाने का शौक है तो शुगर फ्री सैक्रीन का प्रयोग कर सकते हैं।
रोग होने पर जीवनशैली में परिवर्तन लाएं। सक्रिय रहें, नियमित व्यायाम करें। रक्त ग्लूकोज पर सख्ती से नियन्त्रण करें। नियमित दवा अवश्य लें। इस रोग से स्थायी मुक्ति की आशा न करें और किसी के बहकावे में कदापि न आएं।
इस रोग में आपको अपने फैमिली डॉक्टर से नियमित सलाह अवश्य लेते रहना चाहिए।
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