अदित्सन्तं दापयति प्रजानन्। -यजुर्वेद 9.24
विद्वान अदाता को दान देने के लिए प्रेरित करते है।
जो बुद्धिमान है वही विद्वान है। विद्वान सदैव प्रेरक का कार्य करते हैं और कुकर्म में रत रहने वालों को भी सुकर्म करने की प्रेरणा देते रहते हैं। अदाता दानी नहीं होता है और विद्वान सदैव दानी होता है, उसे दान देने के सदुपयोग का भान है। इसलिए वह अदाता को भी दान की प्रेरणा देकर समाज का हित करता है।
विद्वान की प्रेरणा सबने मानी। अदाता का चित भी बने दानी॥
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