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गुरुवार, जुलाई 15, 2010

ब्रह्माण्डीय पर्यावरण का महापर्व कुम्भ एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण -सतीश चन्द्र(ज्योतिष रत्न)



   यह सर्वविदित है कि प्रत्येक बारह वर्ष बाद हदिद्वार, प्रयाग, उज्जैन एवं नासिक में कुम्भ पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर सरकार द्वारा यात्रियों की सुविधा हेतु सुरक्षा, यातायात एवं स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था की जाती है जिस पर करोड़ों रुपए का खर्च आता है। लगभग एक करोड़ से अधिक यात्री सुदूर क्षेत्रों से आकर इस पर्व पर स्नान करते हैं। इस प्रकार भारत वर्ष में कुम्भ मेला संसार का सबसे बड़ा मेला होता है।
अपार जनसमूह क्यों आता है?
अनगिनत लोग इतने बड़े जनसमूह के रूप में सुदूर क्षेत्रों से अपना समय एवं धन व्यय करके कुम्भ पर्व पर अमृत(अच्छा स्वास्थ्य, दीर्घायु, सुख-सम्पन्नता) प्राप्त करने की अभिलाषा से आते हैं। यह अमृत क्या है आइए इस पर विचार करते हैं?
प्रत्येक प्राणी चर या अचर, सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति आदि ग्रहों एवं भीमकाय नक्षत्रों, जो सूर्य से भी कई-कई लाख गुना बड़े हैं से पृथ्वी पर आ रही प्राण ऊर्जा से जीवित रहता है। इस प्राण ऊर्जा की प्रकृति, तीव्रता, सघनता एवं विभव आदि ब्रह्माण्डीय पर्यावरण के अनुसार परिवर्तित होती रहती है तथा ब्रह्माण्डीय पर्यावरण सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति आदि ग्रहों एवं तारा समूहों से उत्सर्जित ऊर्जा से बनता है तथा यह पर्यावरण विभिन्न ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति परिवर्तन के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। ब्रह्माण्डीय पर्यावरण के परिवर्तन के कारण ही पृथ्वी पर प्रत्येक वर्ष मौसम में परिवर्तन होता रहता है जिसके फलस्वरूप किसी वर्ष फसल बहुत अच्छी हाती है, फल बहुत मीठे आते हैं तथा सामान्य जन का स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा किसी वर्ष फसल में कीड़ा लग जाता है, फलों में स्वाद नहीं होता या महामारी आदि होती है।
प्राण ऊर्जा आकाश से पृथ्वी की ओर छोटे-छोटे लाखों चमकीले कणों के रूप में हर समय आती रहती है जिसे प्रत्येक व्यक्ति द्वारा दो मिनट आकाश की ओर ध्यान से देखने पर आभास कर सकता है। इसकी तीव्रता एवं सघनता आकाश में बादल होने पर कम तथा आकाश स्वच्छ होने पर अधिक दिखाई देती है। यह प्राण ऊर्जा जल में घुलनशील होने के कारण हिलते हुए और बहते हुए जल में अधिक मात्राा में शीघ्र घुल जाती है। ब्रह्माण्ड को ऊर्जा का समुद्र कहते हैं और ग्रहादि के परिभ्रमण से इस समुद्र का मन्थन होता है। ग्रहों एवं नक्षत्रों  के योग से जो अमृतमयी ब्रह्माण्डीय बनता है उसको अमृतमयी कुम्भ की संज्ञा दी गई है। स्पष्ट है कि कुम्भ महापर्व अमृतयमी ब्रह्माण्डीय पर्यावरण अर्थात्‌ अमृतमयी प्राण ऊर्जा का एक उदाहरण है जो ग्रह और नक्षत्र के योग से बनता है।
कुम्भ पर्व कब होता है?
गुरु ग्रह बारह वर्ष बाद कुम्भ राशि पर आता है। गुरु कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में आने पर हरिद्वार में पूर्ण कुम्भ पर्व होता है।
मेष राशि में गुरु व मकर में सूर्य होने पर प्रयाग में पूर्ण कुम्भ पर्व होता है।
सिंह राशि में गुरु, मेष में सूर्य व तुला में चन्द्र होने पर उज्जैन में पूर्ण कुम्भ पर्व होता है।
कर्क राशि में गुरु, कर्क राशि में सूर्य, चन्द्र के योग होने पर नासिक में पूर्ण कुम्भ होता है।
उक्त ग्रह योग समस्त स्थानों पर एक समान होते हैं। लेकिन हमारे प्राचीन ऋषियों ने पर्यावरण का अध्ययन करके सामान्य जन को इसका लाभ पहुंचाने की दृष्टि से चार ऐसे स्थान का चयन किया आध्यात्मिक दृष्टि से पवित्र और प्राकृतिक रूप से वहां शुद्ध जल नदी सदृश उपलब्ध रहता है। इस जल में स्नान करना अमृतमयी बताया गया है।  वस्तुतः प्राचीन काल में वर्तमान काल की तरह शुद्ध जल प्राप्त करने की सुविधाएं प्राप्त नहीं थी। शुद्ध जल से स्नान के लिए पूर्णतः नदियों पर ही आश्रित रहना पड़ता था। आजकल तो शुद्ध जल घर पर ही उपलब्ध हो जाता है। अतः शुद्ध जल को खुले एवं बड़े पात्रों में रात्रि में खुले आकाश में कुम्भ काल में रख दिया जाए तो उस जल में भी लगभग वहीं गुण आ जाते हैं जो इन स्थानों में उन कालों में आते थे।
अतः ऐसे व्यक्ति जो कुम्भ पर्व काल में हरिद्वार आदि स्थानों पर नहीं जा पाते वे कुम्भ पर्वकाल के अमृतमयी पर्यावरण का अत्यधिक लाभ घर रहकर ही उठा सकते हैं। लेकिन अधिक लाभ जोकि स्थान विशेष की विशिष्ट ऊर्जा के कारण उक्त स्थान पर जाने पर ही प्राप्त होता है।
भविष्य मे होने वाले महाकुम्भ पर्व काल
भविष्य में होने वाले महाकुम्भ का ज्ञान पूर्व में हो जाए तो काई भी व्यक्ति इस अमृतमयी ब्रह्माण्डीय पर्यावरण से लाभ उठा सकता है। यहां पर भविष्य में पड़ने वाले महाकुम्भ के दिनांक दे रहे हैं-
प्रयाग महाकुम्भ इन दिनांक में होगा-
10 जनवरी 2013,
29 जनवरी 2025,
16 जनवरी 2037
1 फरवरी 2049
हरिद्वार महाकुम्भ इन दिनांक में होगा-
14 अप्रैल 2021,
14 अप्रैल 2033
14 अप्रैल 2033
उज्जैन महाकुम्भ इन दिनांक में होगा-
21 मई 2016,
 8 मई 2028
26 मई 2040
नासिक महाकुम्भ इन दिनांक में होगा-
13 सितम्बर 2015,
31 अगस्त 2027
19 अगस्त 2039
उक्त दिनांक में पड़ने वाले महाकुंभ पर्व पर अमृतमयी रश्मियों से सभी को लाभ उठाना चाहिए।

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