आज की भागदौड़ में मनुष्य के पास सबकुछ है पर समय नहीं है। समय की कमी के कारण वह अपनी सेहत की ओर ध्यान नहीं दे पा रहा है। यह जान लें कि पहला सुख नीरोगी काया है। काया नीरोगी हो तो सारे सुख भोगे जा सकते हैं और यदि काया ही नीरोगी न हो तो सारे सुख भोग नहीं जा सकते हैं।
रसोईघर में प्रयोग में आने वाले कुछ पदार्थों के साथ प्राचीन पारंपरिक पद्धतियों को अपनाएंगे तो परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य बनाए रखने में सफलता मिल सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार धातुओं में भी औषधीय और स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं जोकि शरीर में जीवन तत्त्वों एवं खनिज घटकों की कमी पूर्ण करते हैं। ग्रन्थ रसरत्नसमुच्चय में कुछ धातुएं जैसे तांबा, पीतल, चांदी और सोना के औषधीय गुणों की महत्ता बतायी गयी है। यदि हम अपने दैनिक जीवन में इन चारों धातुओं को प्रयोग में लाएं तो चिकित्सक और दवाईयों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। चांदी तथा सोने के अधिक महंगे होने के कारण तांबा और पीतल का अधिक प्रयोग किया गया है। मंहगी धातु मात्रा आभूषणों में प्रयोग में लाई जाती है।
किसी ने कहा है कि ताबें के बर्तन में रखा जल प्रतिदिन प्रयोग में लाने पर स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे और पीतल के बर्तन में लगभग 8-10 घन्टे जल रखने के बाद इस जल से पकाए व्यंजनों का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
रसरत्नसमुच्य के पांचवे अध्याय के श्लोक 46 में कहा गया है कि अन्दर तथा बाहर से भली-भांति साफ किए हुए तांबे या पीतल(70प्रतिशत तांबा और 30प्रतिशत जस्ता) के बर्तन में लगभग 8-10 घंटे तक रखे जल में तांबे और जस्ते के गुण आ जाते हैं और यह पानी सम्पूर्ण शरीर के लिए लाभदायी होता है।
तांबे तथा जस्ते के औषधीय गुण पानी में लाने के लिए बर्तन का भली-भांति साफ होना परमावश्यक है। तांबे या पीतल के बर्तन प्रतिदिन भली-भांति अच्छी प्रकार घिसकर चमकाने चाहिएं। काले बर्तनों में रखा जल स्वास्थ्य के लिए लाभदायी नहीं होता है।
तांबे के लाभ
तांबा त्वचा में निखार लाता है। पेट के कीड़ों का नाश करता है और भूख लगने में सहायता करता है। बढ़ती आयु में होने वाली रक्तचाप और रक्त विकार के रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायता करता है। मुंह फूलना, घमौरियां आना, नेत्रों की जलन कम करता है। अम्लता से होने वाला सिरदर्द, चक्कर आना और पेट में जलन सदृश कष्ट को दूर करता है। बवासीर एवं एनीमिया के रोग में लाभदायी है। कफनाशक भी है।
पीतल के बर्तन में दो धातुओं के गुण
पीतल के बर्तन में 8-10घंटे रखे जल में तांबे और जस्ते के गुण आ जाते हैं जिससे दोनों धातुओं का लाभ मिलता है। जस्ते से शरीर में प्रोटीन की वृद्धि होती है तथा बालों की समस्त रोगों में लाभ होता है।
तांबे और पीतल का आध्यात्मिक महत्व
तांबा और पीतल में जल और पृथ्वी तत्त्व का प्रमाण अधिक होता है जोकि शरीर के दृष्टिकोण से अत्यधिक लाभदायी है। इसी प्रकार सत्व, रज और तम नामक त्रिगुणों को ग्रहण करने की क्षमता इन दोनों धातुओं में अधिक है। इन धातुओं से बने उपकरणों के दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है। ये धातुएं किफायती भी हैं। स्टील में सत्व गुण ग्रहण करने की क्षमता न के बराबर होती है। पूजा के उपकरण तांबे या पीतल के बने हों तो उनमें सात्विक लहरें ग्रहण करने की क्षमता अन्य धातुओं की तुलना में 30प्रतिशत अधिक होती है। यदि पूजा करते समय इन धातुओं की वस्तुएं प्रयोग में लाई जाएं तो सत्व गुण अधिक होने के कारण ईश तत्त्व शीघ्र आकर्षित होता है। रज-तम गुणों को नष्ट करने की क्षमता तांबे और पीतल में सर्वाधिक है अर्थात् 70 प्रतिशत है। इसी कारण सत्व गुण की सर्वाधिक वृद्धि होती है। वैसे भी घिसकर चमकाए हुए इन धातुओं के दीपक या पूजा उपकरणों में दीप-ज्योति का प्रकाश परावर्तित होकर ईशतत्व की वृद्धि करता है जिससे सर्वाधिक लाभ मिलता है।
तांबे के पात्र में रखा जल लिवर के लिए हानिकारक होता है . यह प्रमाणित हो चुका है
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