जज गोविन्द राणा डे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध जज हुए हैं। जब वह छोटे थे तो उनकी मां नहीं रहीं, घर में केवल उनकी बुआ थीं। उन्होंने ही उन्हें पाला था।
एक बार की बात है कि एक दिन उनका मन नहीं लग रहा था। ऐसे में उन्होंने सोचा कि चौपड़ खेलकर मन बहलाता हूँ। यह सोचकर उन्होंने अपनी बुआ से कहा-'बुआ! मेरा मन नहीं लग रहा है, मैं किसके साथ खेलूं। बुआ आप ही मेरे साथ चौपड़ क्यों नहीं खेलतीं।'
बुआ ने कहा-बेटा! मेरे पास तो बहुत काम पड़ा है। तुम ही खेलो।
जब कोई साथी नहीं मिला तो उन्होंने सोचा कि आंगन के इस खम्बे को ही पार्टनर या साथी बना लेता हूँ।
गोविन्द ने दाहिने हाथ को तो खम्बे को दिया और अपना बायां हाथ रखा।
इस प्रकार खेल खेलने लगे। थोड़ी देर में वे खंबे से हार गए।
बुआ दूर से देख रही थी। वे बोली-'गोविन्द बेटा! तू तो खम्बे से ही हार गया।'
बुआ की बात सुनकर गोविन्द बोला-'बुआ! अब खम्बा तो बेजान है। उसे क्या पता उसके साथ कौन खेल रहा है। बेजान खम्बे से बेईमानी थोड़े ही करता।'
गोविन्द राणा डे आगे चलकर बहुत ईमानदार जज बनें। उनकी ईमानदारी के चर्चे घर-घर होने लगे थे। ईमानदार का सोचना सदैव न्यायपूर्ण होता है।-ज्ञानेश्वर
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