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शनिवार, जुलाई 03, 2010

विपरीत राजयोग - ज्ञानेश्वर



      जब 6,8,12 भाव के स्वामी 6,8 या 12 भाव में स्थित हो तो विपरीत राजयोग बनता
है। इसके तीन प्रकार है-हर्ष, सरल और विमल।
हर्ष-जब षष्ठेश आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो हर्ष नामक विपरीत राज योग बनता है।
सरल-जब अष्टमेश छठे या बारहवें भाव में स्थित हो तो सरल नामक विपरीत राज योग बनता है।
विमल-जब द्वादशेश छठे या आठवें भाव में हो तो विमल नामक विपरीत राज योग बनता है।
6, 8 तथा 12 भाव त्रिक भाव कहलाते हैं।
इनके स्वामी जहां स्थित होते हैं उस भाव को नष्ट कर देते हैं। 
    षष्ठेश का उदाहरण देकर बताते हैं। षष्ठेश अशुभ भाव का स्वामी है और वह जहां स्थित होगा उस भाव के कारकत्व को नष्ट कर देगा। मान लो कि षष्ठेश द्वादश भाव में स्थित है। तो वह द्वादश भाव के कारकत्व को नष्ट कर देगा। परन्तु द्वादश भाव तो स्वयं अशुभ भाव है। इस प्रकार षष्ठेश द्वादश भाव के अशुभत्व को नष्ट कर देगा जो जातक के लिए शुभ होगा। इसलिये इस योग को विपरीत राजयोग कहते हैं। इसी प्रकार अन्य भावों के बारे में जानिए।   

1 टिप्पणी:

  1. विपरीत राजयोगो पर उत्तर काला मृत ,फलदीपिका एवं पराशर होरा शास्त्र के मूल श्लोक एवं उनकी टीका पढ़ने के बाद वेहद मतान्तर देखा गया है | मेरा इस विषय पर शोध लेख बन रहा है जो भोपाल में ज्योतिष महाकुम्भ ६,७,८, अप्रैल २०१८ को प्रस्तुत होगा | अभी के अध्ययन में मुझे उत्तर काला मृत का मत ही सही नजर आया है | फलदीपिका स्वयम में विरोधाभाष दिखा रही है | पाराशरी में तो लग्नेश के उच्च होकर लग्न को देखने की शर्त थोपी है | यदि लग्नेश उच्च होगा और लग्न को ही देखेगा तब लग्न अपने आप ही बलवान होगी और फिर अन्य दोष तो वेसे ही नष्ट होंगे जैस शेर का आगे गीदड़ | मैं अपने लेख में सिर्फ " वैभवशाली और राज राज राजेश्वर ' जो उत्तर काला मृत कर केंद्र बिंदु है तक ही सीमित रह कर धन एवं भौतिक वैभव पर ही लेख की देशा दे रहा हूँ | इस योग में ६-८-१२ के साथ साथ २-११ और ५-१२ के सम्बन्ध से क्या संयोजन होते हैं जो धन वैभव देंगे उस दृष्टिकोण को ले कर चल रहा हूँ |

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