साम्राज्याय सुक्रतु॥-यजुर्वेद, 20.2
सत्कर्म करने वाला साम्राज्य प्राप्त करता है।
सुकर्म करने वाला सुमार्ग का पथिक होता है। उसका मन सबको सुखी देखना होता है। वह निस्वार्थ भाव से सब का भला करता है। इसलिए सब उसका ध्यान रखते हैं। उसके हाथ में सबका नेतृत्व आ जाता है जिससे वह उनका राजा बन जाता है। अतः सत्कर्मी साम्राज्य प्राप्त करता है।
सदा साधा सबका हित, कर सुकर्म, हुआ भला सबका औ' बना धर्म॥
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