यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च।-यजुर्वेद 34/3
मन के तीन गुण हैं-ज्ञान, स्मरण और धारण।
मन जिज्ञासा वश ज्ञान को पाने के लिए तत्पर होता है, तदोपरान्त स्मरण करके धारण करता है। मन पवित्रा और शुद्ध विचार धारण करता है तो मनोबल बढ़ता है और प्रगति-पथ अग्रसर होता है जिसके फलस्वरूप निज और लोक का हित होता है। मन के बिना कोई कार्य होता ही नहीं है, विचार यहीं से कार्यरूप होता है।
मन त्रिगुणी हो जब जगाता सुविचार-ज्योति। मनोबल बढ़े हो जाये जीवन की उन्नति॥
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