शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

पांच दोहे


आस रखता जो किसी से वो बने नहीं समर्थ।
राग रंग   में   डूबकर,  जीवन   जाता  व्‍यर्थ।।1।।
राग द्वेष  से  जो  बचा,  बन  गया  वो निर्झर।
कुछ  पाने  के  लिए रहो न किसी पर निर्भर।।2।।
मन की  बात कहो पर राज को समझो राज।
जीवन  में  सफलता  के लिए अनुपम साज।।3।।
राग द्वेष  औ'  मोह  तो   हैं   मनुज   के  दोष।
जब मिले न इनसे मुक्ति तो फिर कैसा रोष।।4।।
कभी  नहीं  अलापना  चाहिए  अपना  राग।
सुनता  न फिर कोई बात, समझ कर काग।।5।।

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