मंगलवार, अगस्त 10, 2010

भाव-ज्ञानेश्वर



'सदैव अमृतमयी चिन्तन करने से विष भी अमृत हो जाता है और सदा मित्र भाव से चिन्तन करने से शत्रु भी मित्र हो जाता है। भावना के अनुरूप फल की प्राप्ति होती है।'

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