सोमवार, अगस्त 16, 2010

विवेकी



नीर-क्षीर को अलग-अलग करने की सामर्थ्य जब आ जाती है तो मनुष्य विवेकी बन जाता है। विवेकी कीचड़ में पड़े रत्न को अग्राह्य न करके ग्रहण कर लेते हैं।-ज्ञानेश्वर

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